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हनुमान साठिका श्री गोस्वामी तुलसीदास कृत

Hanuman Sathika

हनुमान साठिका के लाभ - हनुमान चालीसा की तरह अगर आप हनुमान साठिका का पाठ करतें हैं तो आप पर सदा हनुमान जी की कृपा बनी रहेगी. हनुमान साठिका का पाठ करने वाले हनुमान भक्त सदा भय से बचे रहतें हैं. इस हनुमान साठिका का पाठ करने से आपका जीवन सदा सुखमय रहेगा

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 हनुमान साठिका के लाभ - हनुमान चालीसा

अथ हनुमान साठिका

चौपाई

जय जय जय हनुमान अड़ंगी ।
महाबीर बिक्रम बजरंगी ॥

जय कपीस जय पवनकुमारा ।
जय जगवन्दन शीश अगारा ॥

जय आदित्य अमर अबिकारी ।
अरि मरदन जय जय गिरिधारी ॥

अंजनि उदर जनम तुम लीन्हा ।
जय जयकार देवतन कीन्हा ॥

बाजे दुंदुभि गगन गंभीरा ।
सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥

कपि के डर गढ़ लंक समानी ।
छूटी बन्दी देवतन जानी ॥

ऋषिसमूह निकट चलि आये ।
पवनतनय के पद सिर नाये ॥

बार-बार अस्तुति करि नाना ।
निर्मल नाम- धरे हनुमाना ॥

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।
दीन बताय लाल फल खाना ॥

सुनत बचन कपि मन हर्षाना ।
रविरथ उगय लालफल जाना ॥

रथसमेत कपि कीन्ह अहारा ।
सूर्य बिना भयो अति अँधियारा ॥

बिनय तुम्हार करी अकुलाना ।
तब कपीस की अस्तुति ठाना ।।

सकल लोक वृत्तान्त सुनावा ।
चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥

कहेउ बहोरि सुनहु बलसीला ।
रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥

तब तुम उनकर करब सहाई ।
अबहिं बसहु कानन महँ जाई ॥

अस कहि बिधि निजे लोक सिधार ।
मिले सखा सँग पवनकुमारे ॥

खेल खेल महातरु तोरे ।
ढेर करें बहु परवत फोरे ॥

जेहि गिरि चरन देइ कपि धाई ।
गिरिसमेत पातालहिं जाई ॥

कपि सुग्रीव बालि के त्रासा ।
निरखत रहे राम मगु आसा ॥

मिले राम तह पवनकुमारा ।
अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥

मणि मुन्दरी रघुपति सो पाई ।
सीता खोज चले सिरनाई ॥

सत जोजन जलनिधि बिस्तारा ।
अगम अपार देवतन हारा ।।

जिमि सर गौखुर सरिस कपीसा ।
लाँघि गये कपि कहि जगदीसा ॥

सीता चरन सीस नित नाये ।
अजर अमर कै आसिष पाये ॥

रहै दनुज उपबन रखवारी ।
एक सों एक महाभट भारी ॥

तिन्हें मारि पुनि कह्यो कपीसा ।
दह्यो लंक काँप्यो भुज बीसा ॥

सिया बोध दै पुनि फिरि आये ।
रामचन्द्र के पद सिर नाये ॥

मेरु उपारि आपु छन माहीं ।
बाँध्यो सेतु निमिष इक माहीं ॥

लछिमन सक्ति लागी जबहीं ।
राम बुलाय कहा मुनि तबहीं ॥

भवन समेत सुखेन लै आये ।
तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥

मग महँ कालनेमि को मारा ।
अमित सुभट निसिचर संहारा ॥

आनि सजीवन गिरि समेता ।
धरि दीन्हा जहँ कृपानिकेता ॥

कपिपति केर सोक हर लीन्हा ।
बर्षे सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥

अहिरावन हरि अनुज समेता ।
लै गयो जहँ हरि पाताल निकेता |

देन चहै बलि काटि कृपाना ।
पवनतनय प्रभु कीन्ह गुहारी ।
कटकसमेत निसाचर मारी ॥

पूछ काश पति सबै बहोरी ।
राम-लखन कीन्हीं एक ठोरी ।।

सब देवन की बन्दि छुड़ाये ।
सो कीरति मुनि नारद गाये ।।

अछयकुमार दनुज बलवाना ।
सानकेत कहँ सब जग जाना ॥

कुम्भकरन रावन कर भाई ।
ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥

मेघनाद पर सक्ति मारा ।
पवनतनय सब सों बरियारा ॥

रहा तनय नारान्तक जाना ।
पल महँ ताहि हते हनुमाना ।।

जहँ लगि मान दनुज कर पावा ।
पवनतनय सब मारि नसावा ।।

जय मारुतसुत जय अनुकूला ।
नाम कृसानु सोम सम तूला ॥

जहँ जीवन पर संकट होई ।
रवि तन सम सो संकट खोई ॥

बन्दि पैर सुमिरै हनुमाना ।
संकट कटै धरै जो ध्याना ॥

जम को बाँधि नामपद कीन्हा ।
मारुतसुत ब्याकुल बहु कीन्हा ॥

सो भुजबल को कीन्ह कृपाला ।
अछय तुम्हें मोर यह हाला ।।

आरत हरन नाम हनुमाना ।
सारद सुरपति कीन्ह बखाना ।।

संकट रहै न एक रती को ।
ध्यान धरै हनुमान यती को ॥

धाबहु देखि दीनता मोरी ।
कहौं पवनसुत जुग करजोरी ॥

कपिपति बेगि अनुग्रह करहू ।
आतुर आइ दुसह दुख हरहू ॥

राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया ।
जवन गुहार लग सिया जाया ।।

बल तुम्हार सकल जग जाना ।
भवबन्धन भंजन हनुमाना ॥

यहि बन्धन को केतिक बाता ।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥

करो कृपा जय जय जय स्वामी ।
बार अनेक नमामि नमामि ॥

सोमवार कर होत निधाना ।
धूप दीप नैवेद्य सुहाना ॥

मंगल दायक को लव लावैं ।
सुर नर मुनि बांछित फल पावैं ॥

जयति जयति जय जय जय स्वामी ।
समरथ पुरुष सुअंतरजामी ॥

अंजनितनय नाम हनुमाना ।
सो तुलसी के प्रान समाना ॥

दोहा

जय कपीस जय पवनसुत, जब अंगद हनुमान ।
राम-लखन सीता सहित सदा कर कल्यान ॥

जो नित पढ़े यह साठिका तुलसी कह विचारि ।
रहे न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥

इति श्री गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री हनुमान साठिका समाप्त ।

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