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श्री हनुमत् स्तोत्राणि

Sri Hanumat Stotrani

श्री हनुमत् ध्यानम् * हनुमान चालीसा * संकटमोचन हनुमानाष्टक * हनुमान बाहुक * श्री बजरंग बाण पाठ * श्रीहनुमत् स्तवन * श्री एकमुखी हनुमत् कवचम् * श्री पंचमुखी हनुमान कवच * श्री एकादशमुख हनुमद् कवचम् * श्री विचित्रवीर हनुमान स्तोत्र * श्री हनुमानजी की आरती * हनुमान साठिका * श्रीरामरक्षास्तोत्रम् * श्रीरामवन्दना * श्रीराम स्तुति * श्रीरामावतार * सुन्दरकाण्ड * हनुमत् कवच * हनुमद वडवानल स्तोत्र * श्री शंत्रुजय हनुमत स्तोत्रम् - श्री हनुमल्लांगूलास्त्र * पंचमुखी हनुमान * हनुमान जी के बारह नाम जप * श्री हनुमत् द्वादशाक्षर मंत्र * हनुमान जी को सिद्ध करने का विधान * हनुमान जी के लिए दीपदान-विधि * श्री हनुमत स्तोत्र * श्री हनुमत् स्तोत्राणि * श्री हनुमान वंदना स्तोत्र * श्री हनुमान नमस्कार स्तोत्र * श्री हनुमदादिषट् कवच प्रयोग * श्रीशत्रुघ्नकवचम् * श्री हनुमान स्तुति * दसाक्षरी हनुमान मंत्र ॐ हं पवननन्दनाय स्वाहा * ऋण मोचन मंगल स्तोत्र * श्रीराम प्रोक्त हनुमत् कवचम् * श्री हनुमत् महावीर मन्त्र * सर्व कार्य सिद्धि हनुमान माला मंत्र * सर्व कामनापूरक हनुमान मंत्र * शनि ग्रह के शांति के लिए हनुमान मंत्र * तनाव निवारण के लिए हनुमान मंत्र * विद्या पाने हेतु हनुमान मंत्र * हनुमत व्यवसाय वृद्धि मंत्र * हनुमत इच्छित वर अष्टदशाक्षर मंत्र * श्री हनुमान बंधन मुक्ति मंत्र * वीर्य और ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए हनुमान मंत्र * श्री हनुमान वशीकरण मंत्र * कार्यसिद्धि के लिये हनुमान मंत्र * सर्वविघ्ननिवारण के लिये हनुमान मंत्र * सर्वदुष्टग्रहनिवारण के लिये हनुमान मंत्र * प्रेत-बाधा-निवारण के लिये हनुमान मंत्र * विष उतारने के लिये हनुमान मंत्र * शत्रु-संकट निवारण के लिये हनुमान मंत्र * महामारी, अमङ्गल, ग्रह-दोष नाश के लिये हनुमान मंत्र * वात रोग निवारण हेतु हनुमान मंत्र * प्लीहा रोग निवारक हनुमान मंत्र * उदररोग नाशक हनुमान मन्त्र * श्री हनुमत जंजीरा शाबर मंत्र * हनुमद् अभीष्ट सिद्धि शाबर उपासना मन्त्र * सर्वरोग निवारक हनुमत शाबर मंत्र * बवासीर दूर करने का शाबर हनुमान मंत्र * श्री हनुमान सिद्धि हेतु साधन एवं रीति * हनुमान चालीसा के आठ सिद्धि कौन कौन से हैं ? * श्री सीता कवच * श्री हनुमान पंचक मेवाड़ी
 
हनुमत् कवच Hanumat Kavach

श्री हनुमत् स्तोत्राणि

श्री हनुमत् स्तोत्राणि के पाठ से लाभ - श्री हनुमत् स्तोत्राणि का नित्य प्रातः पाठ करने वाला आयु, आरोग्य व संतान आदि सर्ववस्तुएं प्राप्त करता है और सबके द्वारा वंदित होता है। इसके पाठ से रोगों से मुक्ति विशेष रूप से मिलाती है।

श्री हनुमत् स्तोत्राणि

अस्य श्री हनुमत्कवचस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः अनुष्टप् छन्दः श्री हनुमान्देवता मारूतात्मजेति बीजम् अञ्जनी सूनुरिति शक्तिः आत्मनः सकलकार्य सिद्धयर्थ जपे विनियोगः ।

ॐ हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ पवनात्मजाय तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ अक्षपद्माय मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ विष्णुभक्ताय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ लंका विदाहकाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ श्री रामकिकराय करतल कर पष्ठाभ्यां नमः ।

ध्यान-

ध्यायेद्बाल-दिवाकर द्युतिनिभ देवारिदर्पापहं,
देवेन्द्र प्रमुखेः प्रशंसि यशसं देदीप्यमानंरूचा।

सुग्रीवादिसमस्त वानर गुंत सुव्यक्त तत्त्वप्रियं,
संरक्तारूण लोचनं पवनजं पीताम्बरालंकष्तम् ।

वज्रांग पिंगलेशाढ्यं स्वर्णकुण्डलमण्डितम् ।
नियुद्धमुपसंक्रम्य पारावार पराक्रमम् ॥

स्फटिकाभं स्वर्णकान्तिं द्विभुजं च कष्ताञ्जलिम्।
कुण्डल द्वय संशोभि मुखाम्बुज हरि भजेत् ॥

वामहस्ते गदायुक्तं पाशहस्तं कमण्डलुम् ।
ऊर्ध्वदक्षिणदोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तयेत् ।।

हनुमान्पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः ।
पातु प्रतीच्यामक्षघ्नः पातु सागर पारगः ॥

उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केषरीप्रियनन्दनः ।
अधस्ताद्विष्णु भक्तश्च पातु मध्ये च पाविनः ॥

अवांतरदिशः पातु सीताशोक विनाशनः ।
लंकाविदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरन्तरम् ॥

सुग्रीव सचिवः पातु मस्तकं वायुनन्दनः ।
भालं पातु महावीरो ध्रुवोर्मध्ये निरन्तरम् ॥

नेत्रे छायापहारी च पातु नः प्लवंगेश्वरः ।
कपोलो कर्णमूले च च पातु श्रीरामकिंकरः ॥

नासाग्रमञ्जनीसूनुः पातु वक्त्रं कपीश्वरः।
पातुकंठे च दैत्यारिः स्कन्धौ पातु सुरार्चितः ॥

भुर्जौ पातु महातेजाः करौ तु चरणायुधः ।
नखान्नखायुद्यः पातु कुक्षौ पातु कपीश्वरः ।।

वक्षो मुद्रापहारी च पाश्र्वे पातु भुजायुधः ।
लंकाविभंजकः पातु पष्ठदेशे निरन्तरम् ॥

नाभि च रामदूतश्च कटिं पात्वनिलात्मजः ।
गुहांय पातु कपीशस्तु गुल्फौ पातु महाबलः ।।

अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्करसन्निभः।
अंड्ङ्गान्यमित सत्त्वाडयः पातु पादांगुलीः सदा ॥

हनुमत्वकवचं यस्तु पठेद्धिद्धान् विचक्षणः ।
स एव पुरुष श्रेष्ठो भुक्ति मुक्ति च विन्दति।
त्रिकालमेककालं वा पाठेन्मासत्रयं पुनः ।।

सर्वारिष्टं क्षणे जित्वा स पुमान् श्रियमाप्नुयात् ।
अर्धरात्रौ जले स्थित्वा सप्तबारं पठेद्यदि ॥

क्षयापस्मारकुष्ठादिताप ज्वर निवारणम् ।
अश्वत्थमूलेर्कबारं स्थित्वा पठति यः पुमान् ॥

स एव जयमाप्नोति संग्रामेष्वभयं तथा।
यः करे धारयेन्नित्यं सर्वान्कामानवाप्नुयात् ।।

लिखित्वा पूजयेद्यस्तु तस्य गष्हभयं हरेत्।
कारागष्डे प्रयाणे च संग्रामे देवविप्लवे।
यः पठेद्धनुमत्कवचं तस्य नास्ति भयं तथा ।।

यो वारां निधिमल्प पल्लवमिवोल्लंघ्य प्रतापान्वितो,
वैदेही धन तल्पाशोक हरणो वैकुण्ठ भक्तप्रियः ।
सोऽर्थवानरपुङ्गवोऽवतु सदा चास्मान्समीरात्मजः ।।

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