श्री पंचमुखी हनुमान कवच
Shri Panchmukhi Hanuman Kavach
श्री हनुमान कवच एक ऐसा ही अत्यंत प्रभावशाली कवच है जिसे धारण करने से जातक सर्वत्र विजयी होता है तथा किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्ति उसका अहित नहीं कर सकती। इस कवच को धारण करने से मनुष्य पर किसी भी तांत्रिक प्रभाव, जादू-टोना आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा वह निर्भय होकर प्रत्येक स्थान पर विचरण करता है। श्री पंचमुख हनुमत कवच अनेकों असाध्य कार्यों को भी पूर्ण करने में उपयोगी है। संस्कृत में मूल कवच है परंतु हिन्दी में भी इसका पाठ बहुत हीं फ़लदायक है। हनुमान कवच का हिन्दी भावार्थ भी साथ में हीं दिया गया है।
अथ श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचम्
ॐ अस्य श्री पञ्चमुखीहनुमत्कवचस्तोत्रमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः, श्री हनुमान् देवता, रां बीजम्, मं शक्तिः, चन्द्रं इति कीलकम्, ॐ रौं कवचाय हूं, हौं अस्त्राय फट् । इति पञ्चमुखीहनुमत्वकवचस्य पाठे विनियोगः ।
भावार्थ :— भगवान् शंकर जी ने एक दिन पार्वती जी से कहा कि इस पञ्चमुखी हनुमत्कवच स्तोत्र मन्त्र का ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छन्द, श्री हनुमान देवता, रां बीज, मं शक्ति, चन्द्र कीलक, रौं कवच और हौं अस्त्र है।
ध्यानम्
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांग सुन्दरम्।
यत्कृतं देविदेवेशि ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥1॥
भावार्थ :— अब हे देवि देवेशि। हनुमान जी का जो ध्यान किया गया है, उस परमप्रिय स्वर्वांग सुन्दर ध्यान को मैं तुमसे कहता हूँ, तुम उसे सुनो ॥1॥
पञ्चवक्त्रं महाभीमं कपियुधसमन्विम् ।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं, सर्वकामार्थ सिद्धिदम् ॥2॥
भावार्थ :— श्री हनुमान् जी का समस्त मनोकामनाओं की सिद्धियों को देनेवाला पाँच मुखों का एवं दश भुजाओं से युक्त कपियूथ समन्वित भीमकाय स्वरूप है ॥2॥
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटि सूर्य समप्रभम्।
दंष्ट्राकरालवदनं भृकुटीलेक्षणम् ॥3॥
भावार्थ :— करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश करने वाले, बड़ी विकट दंष्ट्राओं से विकराल भृकुटि से कुटिल दृष्टि वाले, वानर के मुख का पूर्व में ध्यान करें ॥3॥
अस्येव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंह महद्भुतम् ।
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥4॥
भावार्थ :— इसी के दक्षिण की ओर वाला मुख अतीव अद्भुत एवं नृसिंह के समान है, यह मुख श्री हनुमानजी का विकराल भीषण एवं उग्र तेजवाला शरीर होते हुए भी नाशक है ॥4॥
पश्चिमे गरुडं वक्त्रं वक्रतुण्ड महाबलम्।
सर्वनागप्रशामनं सर्वभूतादिकृन्तनम् ॥5॥
भावार्थ :— श्री हनुमान जी का पश्चिम से गरुड स्वरूपी मुख है जो कि महान् बलशाली एवं वक्र है तथा समस्त नागों एवं समस्त भूत-प्रेतों का नाशक है ॥5॥
उत्तरे शूकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तनभोमयम्।
पाताले विद्धवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥6॥
भावार्थ :— उत्तर में शुकर (वाराह) के समान कृष्ण मुख है जो कि आकाश के समान भासमान (दिखाई देता हुआ) है तथा पाताल में बेताल सिद्धि और समस्त ज्वरादि रोगों का विनाशक है ॥6॥
ऊध्वं ह्याननं घोरं दानवान्तकरं परम्।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र ताटकाया महाहवे ॥7॥
भावार्थ :— हे विप्रेन्द्र। ऊर्जा दिशा में घोर हय (घोड़ा) के समान मुख है, दानवों का अत्यन्त नाशकरने वाला है, जिसने कि ताड़क (आघात करने वाला) में महान् युद्ध में उपस्थित रहकर दानवों को नष्ट किया था ॥7॥
दुर्गतेः शरणं तस्य सर्वशत्रुहरं परम्।
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥8॥
भावार्थ :— दुर्गति में शरण देने वाले सर्व शत्रुहर पञ्चमुख रुद्र दयानिधि हनुमान जी का ध्यान करें ॥8॥
खंगं त्रिशूलं खट्वाङ पाशमंकुशपर्वतम्।
मुष्टौ तु मोदकौ वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥9॥
भावार्थ :— खंग, त्रिशूल, खट्वांग, पाश, अंकुश, पर्वत एवं मुठ्ठियों में मोदक, वृक्ष, कमण्डलु आदि को धारण करने वाले हनुमानजी को ध्यावें ॥9॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशमं मुनिपुंगव।
एतान्यायुधजालानि, धारयन्तं भयापहम् ॥10॥
भावार्थ :— हे मुनिश्रेष्ठ! भिन्दिपाल, ज्ञान मुद्रा आदि दश आयुधों को धारण करने वाले और भय नाश करने वाले श्री हनुमान जी का ध्यान करें ॥10॥
दिव्यमालाम्बरधरं दिव्य गन्धानुलेपनम् ।
सर्वेश्वर्यमयं देवं, महद्विवश्वतो मुखम् ॥11॥
भावार्थ :— दिव्य माला एवं दिव्य वस्त्रधारी तथा दिव्य चन्दनानुलेपी, समस्त ऐश्वयों वाले विश्वतोमुख श्री हनुमान जी का ध्यान करें ॥11॥
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं सशंखवृितं कविराजवर्यम्।
पीताम्बरादिमुकुटैरपि शोभमानं पिङ्गाक्षमाह्यमनिशं स्मरामि ॥12॥
भावार्थ :— पञ्यमुखी, अच्युत (अनश्वर), अनेक विचित्र वर्णों के मुख वाले, सशंखं, अनेक वाद्य युक्त कपिराजों में श्रेष्ठ, पीताम्बर तथा मुकुटादिकों से सुशोभित पिंगाक्ष (पौली-पीली आँखों वाले), अञ्जनिसुत को मैं दिन-रात स्मरण करता हूँ।॥12॥
मर्कटस्य महोत्साहं सर्वशोकविनाशनम्।
शत्रु संहारकं चैतत् कवचं ह्यापदं हरेत् ॥13॥
भावार्थ :— उत्साह का वर्धक, समस्त शोकों का विनाशक, शत्रु संहारक, यह हनुमान जी का कवच निश्चित ही समस्त आपत्तियों को हरता है ॥13॥
ॐ हरिकर्मटमर्कटाय स्वाहा ।।14 ।।
भावार्थ :— महाप्राण हनुमानजी के बाँये पैर के तलवे के नीचे 'ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा' लिखने से केवल शत्रु का ही नहीं बल्कि शत्रुकुल का भी नाश हो जाता है। श्री हनुमान जी वामलता को यानी दुरितता को, तिमिर प्रवृत्ति को हनुमानजी समूल नष्ट कर देते हैं और ऐसे एक बदन को स्वाहा कहकर नमस्कार किया है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रु संहारणाय स्वाहा ।।15।।
भावार्थ :— सकल शत्रुओं का संहार करने वाले पूर्वमुख को, कपिमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमन है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा ।।16।।
भावार्थ :— दुष्प्रवृत्तियों के प्रति भयानक (करालवदनाय), सारे भूतों का उच्छेद करने वाले, दक्षिणमुख को, नरसिंहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा ।17।।
भावार्थ :— सारे विषों का हरण करने वाले पश्चिम मुख को, गरुडमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा ।18।।
भावार्थ :— सकल संपदाएँ प्रदान करने वाले उत्तरमुख को, आदिवराहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमान जी को मेरा नमस्कार है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा ।19।।
भावार्थ :— सकल जनों को वश में करने वाले, ऊर्ध्वमुख को, अश्वमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।
ॐ श्रीपञ्चमुखहनुमन्ताय आञ्जनेयाय नमो नम:॥
भावार्थ :— आञ्जनेय श्री पञ्चमुख-हनुमानजी को पुन: मेरा नमस्कार है।
(नोट - सामान्य पूजा में यहाँ तक हीं पाठ करें। विशेष हेतु आगे के चरण भी करना है। )
ॐ अस्य श्री पञ्चमुखीहनुमत्कवचस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिरनुष्टुप्छन्दः, श्रीरामचन्द्रो देवता, सीतेति बीजम्, हनुमानिति शक्तिः, हनुमतप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
पुनर्हनुमानिति बीजम् । ॐ वायुत्राय इति शक्तिः । अञ्जनीसुत्तायेति कीलकम्। श्री रामचन्द्रवरप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥
अथ न्यासः
ॐ हं हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ वं वायुपुत्राय तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ अं अञ्जीनीसुताच मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ रां रामदुताय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ रुं रुद्रमूर्तये कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ सीताशोकनिवारणाय करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा।
ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् ।
ॐ कपियूधपाय कवचाय हुम्।
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ पञ्चमुखीहनुमते अस्त्राय फट् ।
अथ विनियोगः
ॐ श्रीरामदूताय, आञ्जनेयाय, वायुपुत्राय, महाबलाय, सीताशोकनिवारणाय, महाबलप्रचण्डाय, लंकापुरीदहनाय, फाल्गुनसखाय, कोलाहलसकलब्रह्माण्ड विश्वरूपाय, सप्तसमुद्रनिरन्तरोल्लंघिताय, पिंगलनयनायामितविक्रमाय, सूर्वविम्बफलसेवाधिष्ठित निराकृताय, सञ्जीवन्या अंगदलक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदात्रे, दशग्रीवविध्वंसनाय, रामेष्टाय, सीतासहरामचन्द्रवर प्रसादाय, षट्प्रयोगागमपञ्यमुखीहनुमन्मन्त्र जपे विनियोगः ।।
ॐ हरिमर्कतमर्कटाय स्वाहा ॐ हरिमर्कठमर्कटाय वं वं वं वं स्वाहा। ॐ हरिमर्कठमर्कटाय फं फं फं फं फं फट् स्वाहा (इति पूर्वे)। ॐ मर्कटमर्कटाय खं खं खं खं खं मारणाय स्वाहा। ॐ हरिमर्कटमर्कटाय ठं ठं ठं ठं ठं स्तम्भनाय स्वाहा (इति दक्षिणे)। ॐ हरिमर्कटमर्कटाय डं डं डं डं डं आकर्षणाय सकलसम्पत्कराय ॐ उच्चाटने ढं ढं ढं ढं ढं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखीहनुमते परयन्त्रपरतन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा (इति पश्चिम)। ॐ कं खं गं घं ङं चं छं जं झं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं स्वाहा (इत्युत्तरे)। इति दिग्बन्धः ।
ॐ पूर्वकपिमुख पञ्चमुखी हनुमते ठं ठं ठं ठं ठं। सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा। ॐ दक्षिणमुखे पञ्बमुखीहनुमते करालबदनाय नरसिंहाय हां हां हां हां हां सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा ।। ॐ पश्चिमुखे गरुडासनाय पञ्चुमखीवीरहनुमते मं मं मं मं मं सकलविषहराय स्वाहा ।। ॐ उत्तरमुखे आदि वराहाय लं लं लं लं लं नृसिंहाय नीलकण्ठाय पञ्चमुखीहनुमते स्वाहा ॥ ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय रामेष्टफाल्गुनसखाय सीताशोक निवारणाय लक्ष्मणप्राणरक्षकाय कपिसैन्यप्रकाशाय सुग्रीवाभिमानदहनाय श्रीरामचन्द्रवरप्रसादकाय महावीर्याय प्रथमब्रह्माण्डनायकाय पञ्चमुखीहनुमते भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनी डाकिनी अन्तररिक्षग्रहपरमन्त्रपरयन्त्रपरतन्त्र सर्वग्रहोच्चाटनाय सकलशत्रु संहारणाय पञ्चमुखीहनुमद्वरप्रसादक सर्वरक्षकाय जं जं जं जं जं स्वाहा।
इंद कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः।
एकवारं पठेन्नित्यं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥20॥
साधक इस कवच को पढ़कर फिर एक बार भी इस महाकवच का नित्य पाठ करता है तो उसके सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं ॥20॥
द्विबारं तु पठेन्नित्यं सर्वशत्रुनिवारणम् ।
त्रिवारं तु पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करें परम् ॥21॥
जो नित्य प्रति इस कवच को दो बार पाठ करता है, उसके समस्त शत्रुओं का निवारण होता है तथा जो प्राणी तीन बार पाठ करता है उसे निखिल सम्पत्तियाँ प्राप्त होते
हैं ॥21॥
चतुर्बारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशीकरम् ।
पञ्चबारे पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् ॥22॥
जी प्राणी नित्यप्रति चार बार पाठ करता है वह समस्त लोगों को वश में कर लेता है तथा पाँच बार पढ़ने से समस्त रोगों का निवारण हो जाता है ॥22॥
षड्बारं तु पठेन्नित्यं सर्वदैव वशीकरम्।
सप्तबारे तु पठेन्नित्यं सर्वकामार्थसिद्धदम् ॥23॥
जो प्राणी छः बार नित्यप्रति इसे पढ़ता है वह सभी देवताओं को वश में कर लेता है तथा जो सात बार पढ़ता है, उसकी समस्त कामनाएँ सिद्ध होती हैं ॥23॥
अष्टबारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम्।
नवबारं पठेन्नित्यं सर्वेश्वर्यप्रदायकम् ॥24॥
जो नित्य प्रति इस कवच का पाठ आठ बार करता है, उसे समस्त सौभाग्य प्राप्त हो जाते हैं तथा जो नौ बार नित्य प्रति पाठ करता है, उसे समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हो जाते हैं ॥24॥
दशबारं एकादशं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम्।
पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिंलभेन्नरः ॥25॥
जो साधक नित्यप्रति दश बार पढ़ता है उसे त्रैलोक्य का ज्ञान होता है तथा जो ग्यारह बार पढ़ता है, वह प्राणी समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है ॥25॥
कवचं स्मृतिमात्रेण, महालक्ष्मीफलप्रदम् ।
तस्माच्च प्रयता भाव्यं कार्य हनुमतः प्रियम् ॥26॥
इस कवच के केवल स्मृति (मात्र) से ही महालक्ष्मी प्राप्त होती है। इसलिए हनुमान जी के इस कवच का पाठ अत्यन्त प्रयत्न के द्वारा करना चाहिए। इस कवच के पाठ से हनुमान जी का प्रिय कार्य करना चाहिए ॥26॥
॥ इति श्री पञ्चमुखी हनुमत्कवचम् ॥
नोट - इस कवच के पाठ के नियम -
- प्रातः काल जल्दी उठें और स्नान आदि करके शुद्ध हो जाएँ ।
- इसके उपरान्त लाल आसन पर बैठकर अपने सामने हनुमान जी की मूर्ति को रखें।
- पाठ करने से पूर्व श्री राम और हनुमान जी का स्मरण करें।
- श्री हनुमान जी सिन्दूर, चोला और जनेऊ को अर्पित करें और इसके उपरांत ही कवच का पाठ शुरू करें।
पंचमुख हनुमत कवच के लाभ पंचमुखी हनुमत कवच के निम्न लाभ होते हैं –
- शत्रु की बुरी नजर से मुक्ति प्राप्त होती है।
- भूत–प्रेत तथा नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है।
- इस कवच को शोकनाशक भी कहा जाता है क्योंकि इससे समस्त प्रकार की चिंताएं दूर होती है।
- इस कवच से किसी भी प्रकार के अनिष्ट का भय दूर होता है।
- काले जादू और टोटकों के प्रभाव से व्यक्ति को मुक्त करता है।
- कुण्डली में स्थित समस्त प्रकार के राहु–केतु आदि दोषों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
जय बजरंग बली हनुमान।
- साधक प्रभात