श्री एकादशमुख हनुमद् कवचम्
Sri Ekadashmukh Hanumad Kavacham
श्री एकादशमुख हनुमद् कवचम्
श्री एकादशमुख हनुमद कवचम् अगस्त्य संहिता में वर्णित है और भगवान ब्रह्मा द्वारा सुनाया गया है। यह मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन इस कवच का अभ्यास करता है, भगवान हनुमान उसकी हर कठिनाई से रक्षा करते हैं और उसके सभी प्रतिस्पर्धियों का वध हो जाता है। श्री एकादशमुख हनुमद कवचम् के पाठ से महाशक्ति प्राप्त होती है और मन पर पूरी तरह से नियंत्रण हो जाता है। इस कवच को चालीस हजार बार पढ़ना चाहिए। नित्य एक बार पढ़ने से यह समस्त सिद्धियां पूरी करता है।
ब्रह्मप्रोक्त कवच - श्री एकादशमुख हनुमद् कवचम्
लोपामुद्रोवाच
कुम्भोद्भव दयासिन्धो श्रुतं हनुमतः परम्।
यन्त्रमंत्रादिकं सर्व त्वन्मुखोदीरितं मया ॥
दयां कुरुमयि प्राणनाथ बेदितुमुत्सहे ।
कवचं वायुपुत्रस्य एकादशमुखात्मनः॥
इत्येवं वचनं श्रुत्वा प्रियायाः प्रश्नयान्वितम् ।
वक्तुं प्रचक्रमे तत्र लोपामुद्रापितः प्रभुः ॥
हिंदी भावार्थ - हे कुंभोद्धव, हे देवसिंधी, मैंने तुम्हारे मुंह से बोले गए हनुमान के सभी परम यंत्र-मंत्रादि सुने। हे प्राणनाथ, दया करके मुझे वायुपुत्र के एकादशमुख कवच के बारे में बताएं। प्रिया के ऐसे विनीत वचन सुनकर लोपामुद्रा से प्रभु (अगस्त्य) बोले
अगस्त्योवाच
नमस्कृत्वा रामदूतं हनुमन्तं महामतिम्।
ब्रह्मप्रोक्तं तु कवचं शृणु सुन्दरि सादरम् ॥
सनन्दनाय सुमहच्वतुराननभाषितम् ।
कवचं कामदं दिव्यं सर्वराक्षोनिर्बहणम् ।।
सर्वसम्पत्प्रदं पुण्यं मत्यांनां मधुरस्वरे ।
हिंदी भावार्थ - हे सुंदरि, रामदूत महामति हनुमान को नमस्कार करके ब्रह्मप्रोक्त कवच के बारे में आदरपूर्वक सुनो। प्रिये, चतुरानन ब्रह्मा ने सर्वकामनाओं को पूरा करने वाले, सर्वराक्षसों का निवारण करने वाले और सर्वसंपत्तियों को प्रदान करने वाले इस पुण्य कवच के बारे में सनंदनादि से मधुर वाणियों में बताया है।
विनियोग
ॐ अस्य श्रीमदेकादशमुखहनुमत्कवचस्य सनन्दन ऋषिः। अनुष्टुप्छन्दः । प्रसन्नात्मा हनुमान्देवता। वायुपुत्रेति बीजम्। मुख्यः प्राण इति शक्तिः सर्वकामनार्थसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ॐ स्फ्रें बीजं शक्तिधृक् पातु शिरो में पवनात्मजः । क्रौं बीजात्मा नयनयोः पातु मां वानरेश्वरः ।। क्षं बीजरूपी कणौं में सीताशोकविनाशनः । ग्लौं बीजावाच्यो नासां में लक्ष्मणप्राणदायकः ॥ वं बीजार्थश्च कण्ठं में पातु चाक्षय्यकारकः। ऐं बीजवाच्योहृदयं पातु में कपिनायकः ॥ वंबीजकीर्तितः पातु बाहू में चाञ्जनीसुतः ह्रां बीजो राक्षसेन्द्रस्य दर्पहापातु चोदरम् ।। ह्रसौं बीजमयो मध्यं पातु लङ्काविदाहकः। ह्रीं बीजधरो मां पातु गुहां देवेन्द्रवन्दितः ।
रं बीजात्मा सदा पातु चोरुवारिधिलङ्घनः। सुग्रीवसचिवः पातु जानुनी मे मनोजवः ।॥ पादौ पादतले पातु द्रोणाचलधरी हरिः। आपदमस्तकंपातु रामदूतो महाबलः । पूर्वे वानरवक्त्रो मामग्नेयां क्षत्रियान्कृत्। दक्षिणे नारसिंहस्तु नैऋत्यां गणनायकः ॥ वारुण्यां दिशि मामव्यात्खगवक्त्रो हरीश्वरः। वायव्यां भैरवमुखः कौबेर्यां पातु मां सदा ।। क्रोडास्यः पातु मां नित्यमी शान्यां रुद्ररूपधृक् । ऊर्ध्व हयाननः पातु त्वध; शेषमुखस्तथा। रामास्यः पातु सर्वत्र सौम्यरूपी महाभुजः । इत्येवं रामदूतस्य कवचं प्रपठेत्सदा ।। एकादशमुखस्यैतद् गोप्यंवैकीर्तितं मया। राक्षोघ्नं कामदं सौम्यं सर्वसम्पद्विधायकम् ॥ पुत्रदं धनंद चोग्रशत्रुसंघविमर्द्दनम्। स्वर्गापदर्गदं दिव्यं चिन्तितार्थप्रदं शुभम् ।। एतत्कवचमज्ञात्वा मंत्रसिद्धिर्न जायते। चत्वारिशत्सहस्त्राणि पठेच्छुद्धात्मना नरः ॥ एकवारं पठेन्नित्यं कवचं सिद्धिदं पुमान्। द्विवारं वा त्रिवारं वा पठन्नायुष्यमाप्नुयात् ॥ क्रमादेकादशादेवमावर्तनजपात्सुधीः। वर्षान्ते दर्शनं साक्षाल्लभते नात्र संशयः यंयं चिन्तयते चार्थ तंतं प्राप्नोति पुरुषः। ब्रह्मोदीरितमेतद्धि तवाग्रे कथितं महत् ।।
हिंदी भावार्थ - हे प्रिय! चतुर्मुख ब्रह्मा ने समस्त अभीष्टप्रद एवं सम्पूर्ण राक्षसों को नष्ट करने वाले तथा अणिमादि आट सिद्धियों को देने वाले, एकादश मुख वाले श्री हनुमान जी | के पुण्यकारी कवच का वर्णन भगवद्-पार्षद सनन्दनादिक से मधुर स्वर में इस प्रकार किया। हे सनन्द्नादि महर्षिगण। इन एकादशमुख वाले हनुमत्कवच मन्त्र के सनन्दन ऋषि प्रसन्न चित्त वाले हनुमान देवता, अनुष्टुप् छन्द, बीज एवं मुख्य प्राण शक्ति रूप से हैं, इस प्रकार कहा साधक को चाहिए कि वह दाहिने हाथ में जल लेकर 'ॐ अस्य श्रीकवचस्य, एकादशवक्त्रस्य' इत्यादि देशकाल का निरूपण करते हुए 'सर्वकामार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः तक कहकर भूमि पर जल छोड़ दें।। न्यास-तत्पश्चात् 'स्फ्रें बीजशक्तिधृक् पातु' से आरम्भ कर, 'इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः' तक पढ़कर करादि तथा हृदयादि षडङ्गन्यास करें।। कवच- 'वं' बीजयुक्त अंजनीसुत मेरे दोनों भुजाओं की, 'ह्रा' बीज युक्त रावण के अभिमान को नष्ट करने वाले दर्पहा पेट की, 'सौं' बीज सहित लंका- विदाहक नाभि की, 'ही' बीज वाले देवेन्द्रवन्दित गुप्तांग की, 'र' बीजात्मक वार्धिलंघन दोनों घुटनों की, सुग्रीवमन्त्री मनोजव मेरे जानु की रक्षा करें ।। इसी प्रकार महाबली रामदूत पैर से लेकर मस्तक पर्यन्त मेरे सभी अंगों की रक्षा करें तथा वानरमुख वाले पूर्व दिशा में, परशुराम आकृति वाले आग्नेय में, नारसिंह वक्त्रवाले दक्षिण में, गणेश मुखवाले नैर्ऋत्य में एवं गरुड मुखवाले कपीश्वर पश्चिम में, भैरव मुखवाले वायव्य में, वाराह मुखवाले उत्तर में तथा रुद्रमुख वाले ईशान दिशा में मेरी निरन्तर रक्षा करें।। विशाल बाहुवाले, शान्त - स्वरूप, मर्यादा - पुरुषोत्तम भगवान् राम मेरी निरन्तर रक्षा करें। इस प्रकार मैंने आपसे राक्षसों को नष्ट करने वाले, सर्वाभीष्टप्रद, सौम्य, सर्वसम्पत्ति-प्रदायक, पुत्र एवं धनप्रद तथा समस्त शत्रु और उनकी सम्पत्तिविनाशक, चिन्तित मनोरथ पूर्णकारक. स्वर्ग-मोक्षप्रद, एकादश-मुख वाले हनुमान् जी के इस दिव्य कवच का वर्णन किया। इस कवच को बिना किय किसी भी अवस्था में मन्त्र सिद्धि नहीं होती ।। मनुष्य को चाहिए कि वह अत्यन्त श्रद्धा-भक्तिपूर्वक चालीस हजार इस कवच का पाठ करे तथा सदैव एक बार पाठ करने से यह कवच सिद्ध होता है। इस प्रकार दो या तीन बार नित्य पाठ करने से अपमृत्यु (अकाल मृत्यु) का नाश एवं आयुष्य वृद्धिकारक होता है। जो साधक नित्य इस कवच का ग्यारह बार पाठ करता है, उसे निश्चित ही वर्ष भर के भीतर नि:संदेह हनुमान् जी का साक्षात्कार दर्शन प्राप्त होता है और वह जिन-जिन कामनाओं की इच्छा करता है वे सभी अवश्य ही उसके पूर्ण होते हैं। हे प्रिये! ब्रह्मा ने सनन्दनादि ऋषियों से जिस प्रकार इस कवच का निरूपण किया था, उसे मैंने तुम्हारे समक्ष सम्पूर्णरूप से कहा।। इस प्रकार महर्षि अगस्त्यजी ने इस कवच का चन्द्रमुखी लोपामुद्रा के समक्ष वर्णन कर मौन हो गये । तत्पश्चात् अत्यन्त प्रसन्न चित्तवाली उस लोपामुद्रा ने अपने परमाराध्य पति अगस्त्यजी के चरणों में अत्यन्त श्रद्धा-भक्ति युक्त हो प्रणाम किया।।