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श्री हनुमत् कवच

Sri Hanumat Kavach

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हनुमत् कवच Hanumat Kavach

हनुमत् कवच

हनुमत्कवच का पाठ करने वाला श्रेष्ठ पुरुष  तीन महीने तक तीनों  काल या एक ही काल में इसका पाठ करने वाला नर सर्वशत्रुओं को क्षण में ही जीत लेता है और असीम संपदा की प्राप्ति करता है। आधी रात को जल में स्थित होकर इस कवच का सात बार पाठ किया जाए तो क्षय, अपस्मार, कुष्ठ आदि तीनों तापों का निवारण होता है। रविवार को पीपल के नीचे आसीन होकर इस कवच का पाठ करने वाले को अचल संपदा की उपलब्धि होती है और संग्राम में विजय मिलती है। हनुमान का स्मरण करने से बुद्धिबल, यश, धैर्य, निर्भयता, आरोग्यता, सुदृढ़ता  की प्राप्ति होती है।
कवच को लिखकर उसकी पूजा करने वाले की सर्वत्र विजय होती है। नित्य प्रातः इसका पाठ करने वाला आयु, आरोग्य व संतान आदि सर्ववस्तुएं प्राप्त करता है और सबके द्वारा वंदित होता है। इस कवच को पढ़ने के बाद ही श्रीराम कवच पढ़ना चाहिए। किसी भी कवच का एकल पाठ नहीं करना चाहिए। हनुमत्कवच का पाठ किए बिना श्रीराम कवच को पढ़ने वाले का पाठ निष्फल हो जाता है। अतः सदैव दोनों का पाठ करना ही शुभ है।

हनुमत् कवच

रामचन्द्रोवाच

हनुमान् पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः ।
पातुप्रतीच्यां रक्षोघ्न: पातु सागरपारगः ॥

उदीच्यामूर्ध्वग: पातु केसरीप्रियनन्दनः।
अधस्तुविष्णुभक्तश्च पातु मध्यं तु पावनिः ॥

लङ्काविदाहकः पातु सर्वापद्भयो निरन्तरम् ।
सुग्रीव सचिवः पातु मस्तकं वायुनन्दनः ॥

भालं पातु महावीरो भवोर्मध्ये निरन्तरम्।
नेत्रे छायापहारी च पावनः प्लेगेश्वरः ॥

कपोले कर्णमूले च पातु श्रीरामकिङ्करः ।
नासारामञ्जनीसूनुः पातु वक्त्रं हरीश्वरः ॥

वाचं रुद्रिप्रिथः पातु जिह्वां पिङ्गललोचनः ।
पातु देवः फाल्गुनेछचुबुकं दैत्यदर्पहा ॥

पातु कण्ठं च दैत्यारिः स्कन्धौ पातु सुरार्चितः ।
भुजौ पातु महातेजाः करी च चरणायुधः ॥

नखान्नखायुधः पातु कुक्षौ पातु कपीश्वरः ।
वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्वे भुजायुधः ॥

लड्काविभञ्जनः पातु पृष्ठदेशे निरन्तरम्।
नाभिं च रामदूतस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः ॥

गुहां पातु महाप्रज्ञों लिगं पातु शिवप्रियः।
ऊरू च जानुनि पातु लड्काप्रासादभञ्जनः ॥

जङ्घे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फौ पातु महाबलः ।
अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्करसन्निभः ॥

अङ्ङ्गान्यमितसत्त्वाढ्यः पातु पादांगुलीस्तथा।
सर्वाङ्गानि महाशूरः पातु रोमाणि चात्मवित् ॥

हनुमत्कवचं यस्तु पठेद्विद्वान्विचक्षणः ।
ए एवं पुरुषश्रेष्ठो भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥

त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयं नरः सर्वान् ।
रिपून्क्षणाञ्जित्वा स पुमान् श्रियमाप्नुयात् ॥

मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तवारं पठेद्यदि।
क्षयास्मारकुष्ठादितापअयनिवारणः ॥

अश्वत्थमूलेऽर्कवारे स्थित्वा पठति यः पुमान्।
अचलां श्रियमाप्नोति संग्रामे विजयं तथा ॥

बुद्धिर्बलं यशो धैर्य निर्भयत्वमरोगताम।
सुदाढर्यं वाक्रस्फुरत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत् ॥

मारणं वैरिणां सद्यः शरणं सर्वसम्पदानम् ।
शोकस्य हरणे दक्षं वन्दे तं रणदारुणम् ॥

लिखित्वा पूजयेद्यस्तु सर्वत्र विजयी भवेत् ।
यः करे धारयेन्नित्यं स पुमाञ्छ्यिमाप्नुयात् ॥

स्थित्वा तु बन्धने यस्तु जपं कारयति द्विजैः ।
तत्क्षणान्मुक्तिमाप्नोति निगडात्तु तथैव च ॥

य इदं प्रातरुत्थाय पठेच्च कवचं सदा।
आयुरागोग्यसन्तानैस्तस्य स्तव्यः स्तवो भवेत् ॥

इदं पूर्वं पठित्वा तु रामस्य कवचं ततः ।
पठनीयं नरैर्भक्त्या नैकमेव पठेत्कदा ॥

हनुमत्कवचं चात्र श्रीरामकवचं विना।
ये पठन्ति राश्चत्र पठनं तद्धथा भवेत ॥

तस्मात्सर्वैः पठनीयं सर्वदा कवचद्वयम् ।
रामस्य वायुपुत्रस्य सद्भक्तैश्च विशेषतः ॥

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