श्री हनुमदादिषट् कवच
Shri Hanumdadishat Kavach
श्री हनुमदादिषट् कवच
श्री हनुमदादिषट् कवच के बारे में श्रीमदानंद रामायण के मनोहरकांड में यह उल्लेख मिलता है। हनुमत्कवच का पाठ करने के उपरांत शत्रुघ्न कवच का पाठ करना शुभ है। फिर भरत कवच और इसके उपरांत सौमित्र कवच का पाठ करना चाहिए। अब भाग्यवर्द्धन के लिए सीता कवच का पाठ करने के बाद श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ( श्रीराम कवच) का पाठ करना चाहिए। प्रत्येक दिन इन छह कवचों का पाठ सर्ववांछित फल प्रदान करता है। है। इन श्रेष्ठ छह कवचों को पढ़ना मोक्षसाधन का माध्यम है। इसे ज्ञात कर इनको सर्वदा पढ़ना चाहिए। अशक्त होने की स्थिति में हनुमान, लक्ष्मण, सीता व राम का कवच पढ़ना चाहिए। चार कवचों को पढ़ने का अवकाश न मिल सके तो हनुमान, सीता व श्रीराम के तीन कवच पढ़ने चाहिए। तीन कवच के पढ़ने का अवसर न मिल सके तो हनुमान व श्रीराम के दो कवच पढ़ने चाहिए।
श्री हनुमदादिषट् कवच
आदौ नरैर्मारुतेश्च पठित्वा कवचं तंतः शुभम् ।
शत्रुघ्नकवचं पठनीयमिदं शुभम् ॥
पठनीयं भरतस्य कवचं परमं ततः।
ततः सोमित्रिकवचं पठनीयं सदा नरैः॥
पठनीयं ततः सीताकवचं भाग्यवर्द्धनम् ।
ततः श्रीरामचन्द्रस्य कवचं सर्वदोत्तमम् ॥
पठनीयं नरैर्भक्तया सर्ववांछितदायकम् ।
एवं षट्कवचान्यत्र पठनीयानि सर्वदा ॥
पठनं षट्कवचानां श्रेष्ठं मोक्षैकसाधनम्।
ज्ञात्वात्र मानवैर्भक्त्या कार्य च पठनं सदा ॥
अशक्तेनात्र चत्वारि पठनीयानि सादरम्।
हनुमतश्च सौमित्रेः सीताया राघवस्य च ॥
इमानि पठनीयानि चत्वारि कचानि हि।
चतुर्णा कवचानां च पठने न मानवास्य च ॥
न यद्यत्रावकारशश्चेत्तदा त्रीणि पठेन्नरः ।
मारुतेश्चात्र सीतायास्तथा श्रीराघवस्य च॥
त्रयाणां कवचानां च न पाठावसरो यदा।
पठनार्थं मानवाय तदा द्वे कवचे स्मृते ॥
मारुतेश्चात्र रामस्य सीताया राघवस्य वा।
नैकमेव पठेच्चात्र श्रीरामकवचं शुभम् ॥
अवकाशे कवचानां षट्कमेव सदा नरैः।
पठनीयं क्रमेणैव कर्तव्यो नालसः कदा ॥
यदावकाशो नास्त्येव तदा तेषां सुखाप्तये।
मया विशेषः प्रोक्तोऽयं न सर्वेषां मयेरितः॥