श्रीहनुमत् स्तवन (हनुमान स्तवन) पाठ हिंदी अर्थ सहित
Shri Hanumat Stavan
हनुमान स्तवन का पाठ हनुमान जी का आवाहन करने के लिए किया जाता है | स्तवन शब्द का अर्थ है "प्रसन्न" | श्रीहनुमत् स्तवन सारे कष्ट से मुक्ति दिलाती है । सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है | जातक का मानसिक तनाव कम होता है । इससे हनुमान जी जल्दी प्रसन्न होते हैं । इससे आपके जीवन में खुशियां आती हैं और धन-धान्य की वृद्धि होती हैं । यदि इसके साथ हनुमान चालीसा का पाठ भी किया जाए तो अविश्वसनीय रूप से फलदायी होता है | श्रीहनुमत् स्तवन तुलसीदास जी के समय से और पहले का लिखा प्रतीत होता है |
श्रीहनुमत् स्तवन पाठ
॥ सोरठा ॥
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन ।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥
अर्थ :- मैं अंजनी पुत्र और राम भक्त हनुमान को नमस्कार करता हूँ, जो राक्षस रूपी वन में अग्नि के समान ज्ञान से परिपूर्ण हैं। जिनके हृदय में हमेशा उनके प्रभु श्री राम निवास करते हैं।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥
अर्थ :- जिस बल की तुलना किसी से भी नहीं कर सकते, अतुलित बल के निवास वाले, हेमकूट पर्वत के समान शरीर वाले और जो राक्षस रूपी वन के लिए अग्नि की तरह, ज्ञानियों में आगे रहने वाले, सभी वानरों के स्वामी, राम के प्रिय भक्त और पवन पुत्र हनुमान को नमस्कार करता हूँ।
गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम् ।
रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥
अर्थ :- विशाल सागर, धेनु के खुर को संक्षिप्त बना देने वाले, विशाल दैत्यों के रूप को मच्छर जैसा बनाने वाले, जो रामायण रूपी महती माला का रत्न वायुपुत्र हनुमान को मैं नमस्कार करता हूँ।
अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम् ।
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम् ॥
अर्थ :- अपनी माता अंजनी को प्रसन्न रखनेवाले, जो माता सीता जी के सभी तरह के शोक को हरने वाले, लंकापति रावण के पुत्र अक्ष को मारने वाले, लंका में चारों तरफ भंयकर स्वरूप देने वाले, वानरों के स्वामी को मैं बार बार नमन करता हूँ।
उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं
यः शोकवनिं जनकात्मजायाः ।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां
नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ॥
अर्थ :- जिन्होंने विशाल सागर को अपनी बुद्धि और चतुराई से पार किया और लंका में पहुंचे तथा माता सीता के सभी तरह के कष्टों की शोक रूपी अग्नि को लेकर उन्होंने लंका का दहन किया, उन अंजनी पुत्र हनुमान को मेरा हाथ जोड़ कर नमस्कार है |
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
अर्थ :- जो मन के समान गति वाले, हवा की तरह वेग वाले, अपनी सभी इंद्रियों पर जीतने वाले, जो सभी विद्वानों में एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, वानरों के समूह के मुखिया, मैं उस राम के दूत हनुमान की शरण में आता हूँ।
आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीयविग्रहम् ।
पारिजाततरुमूलवासिनं भावयामि पवमाननन्दनम् ॥
अर्थ :- माता अंजनी के पुत्र, जिनका मुख गुलाब के फूल की तरह, हेमकूट पर्वत की तरह सुंदर दिखाई देने वाले, जिनका निवास कल्पवृक्ष की जड़ में है, मैं उन वायु पुत्र हनुमान का स्मरण करता हूँ।
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् ।
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ॥
अर्थ :- हनुमान जी जहां कहीं भी श्री राम का कीर्तन और गुणगान होता हैं वहां पर मस्तक पर हाथों को जोड़े हुए, आंनद रूपी आँसू से भरे हुए नेत्रों तथा दैत्यों के काल के समान रहने वाले उन वायुपुत्र हनुमान को मैं नमस्कार करता हूँ।