श्री शंत्रुजय हनुमत स्तोत्रम् हनुमल्लांगूलास्त्र स्तोत्र
Sri Shantrujaya Hanumat Stotram Hanumallangulastra Stotram
श्री शंत्रुजय हनुमत स्तोत्रम् हनुमल्लांगूलास्त्र स्तोत्र
शत्रुंजय स्तोत्र हनुमान उपासना का एक विशिष्ट प्रभावशाली स्तोत्र है। इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने वाले साधक के समस्त शत्रुओं, विरोधियों, आलोचकों तथा व्याधियों का समूल नाश हो जाता है। इस स्तोत्र में हनुमान जी के लंगूर रूप की आराधना की जाती है, इसलिए इस स्तोत्र को श्री हनुमल्लांगूलास्त्र स्तोत्र भी कहते हैं। विधिपूर्वक साधना हेतु हनुमान जी की पंचोपचार पूजन करके इष्ट सिद्धि हेतु इस स्तोत्र का ग्यारह बार पाठ करना चाहिए तथा एक पाठ से हवन करना चाहिए।
लांगूलास्त्र शत्रुजन्य हनुमत स्तोत्र
ॐ हनुमन्तमहावीर वायुतुल्यपराक्रमम्।
मम कार्यार्थमागच्छ प्रणमाणि मुहुर्मुहुः ।।
वायु के समान पराक्रमी, महाबली, हनुमान जी को मैं बार-बार प्रणाम करता हूँ, और प्रार्थना करता हूँ कि मेरे कार्य के लिए आप आइए ॥ १ ॥
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीहनुमच्छत्रुञ्जयस्तोत्रमालामन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, नानाच्छन्दांसि, श्रीमन्महावीरो हनुमान् देवता, मारुतात्मज इति ह्सौं बीजम्, अञ्जनीसूनुरिति ह्फ्रें शक्तिः, ॐ हाहाहा इत्ति कीलकम्, श्रीरामभक्त इति ह्रां प्राणः, श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर इति ह्रां ह्रीं ह्रूं जीवः, ममाऽरातिपराजयनिमित्त-शत्रुञ्जयस्तोत्र-मालामन्त्र जपे विनियोगः ।
नोट - दाहिने हाथ में जल लेकर, 'ॐ अस्य श्रीहनुमच्छत्रुञ्जय- स्तोत्र-मालामन्त्रस्य' से आरम्भ कर, 'मालामन्त्रजपे विनियोगः' तक मन्त्र पढ़कर जल छोड़ना चाहिए।
करन्यासः-
ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ऐं श्रीं हां हीं हूं स्फ्रें ख्फ्रें हस्रौं ह स्रूफ्रें ह्सौं रामदूताय तर्जनीभ्यां नमः । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लक्ष्मणप्राणदात्रे मध्यमाभ्यां नमः । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं अञ्जनीसूनवे अनामिकाभ्यां नमः । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं सीताशोक बिनाशनाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लङ्काप्रासादभञ्जनाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । इति करन्यासः ।
नोट - 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ... अंगुष्ठाभ्यां नमः' मन्त्र पढ़कर दोनों हाथ की तर्जनी अंगुलियों से दोनों अँगूठों को स्पर्श करे। 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्र... तर्जनीभ्यां नमः' से दोनों हाथ के अंगूठे से दोनों तर्जनी अगुलियों का स्पर्श करे। 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ...... मध्यमाभ्यां नमः' मन्त्र से दोनों हाथ के अँगूठों से मध्यमा अगुलियों को छुए। 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्र........ अनामिकाभ्यां नमः' इस मन्त्रसे दोनों हाथ की अनामिका अंगुलियों का स्पर्श करे। 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं .. कनिष्ठिकाभ्यां नमः' पढ़कर दोनों हाथ के कानी अँगुलियों को छुए। 'ॐ ऐं श्रीं हां ह्रीं .... करतल करपृष्ठाभ्यां नमः' मन्त्र पढ़कर दोनों हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का स्पर्श करे ।
हृदयादिन्यासः –
ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो हनुमते हृदयाय नमः । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं रामदूताय शिरसे स्वाहा । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लक्ष्मणप्राणदात्रे शिखायै वषट् । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं अञ्जनीसूनवे कवचाय हुम् । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं सीताशोकविनाशनाय नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लङ्काप्रासाद- भञ्जनाय अस्त्राय फट् । इति हृदयादिन्यासः ।
नोट - 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ...... हृदयाय नमः' इस मन्त्र से दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से हृदय का स्पर्श करे । 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ...... शिरसे स्वाहा' से शिर का स्पर्श करे । 'ॐ ऐं श्रीं...... शिखायै वषट्' से शिखा का स्पर्श करे। 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं .... कवचाय हुम्' से दाहिने हाथ से बायें कन्धे और बायें हाथ से दाहिने कन्धे का स्पर्श करना चाहिए । 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्र.... नेत्र-त्रयाय वौषट्' से दाहिने हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों का स्पर्श करे और 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्र.... अस्त्राय फट्' इस मन्त्र से दोनों हाथ के अँगूठों को चिटका देना चाहिए ।
ध्यानम् -
ध्यायेद् बाल-दिवाकरद्युतिनिभं देवारि-दर्पापहं
देवेन्द्र-प्रमुखैः प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा ।
सुग्रीवादि-समस्त-वानरयुतं सुव्यक्त-तत्त्वप्रियं
संरक्ताऽरुण-लोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम् ।। १ ।।
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं पपद्ये ॥ २ ॥
वज्राङ्ग पिङ्गकेशाढचं स्वर्ण-कुण्डल-मण्डितम् ।
नियुद्धमुपसङ्कल्प - परावार - पाराक्रमम् ॥ ३ ॥
गदायुक्तं वामहस्तं पाशहस्तं कमण्डलुम् ।
उद्यद्-दक्षिण-दोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तयेत् ॥ ४ ॥
इति ध्यात्वा, 'अरे मल्ल चटख' इत्युच्चारणेऽथवा 'तोडरमल्ल चटख' इत्युच्चारणे कपिमुद्रां' प्रदर्शयेत् ।
नोट - 'ध्यायेद् बाल-दिवाकर०' से लेकर 'हनुमन्तं विचिन्तयेत्' तक ध्यान के चार श्लोक पढ़कर श्री हनुमान्जी का ध्यान करे । इस प्रकार हनुमान्जी का ध्यान कर, 'अरे मल्ल चटख' ऐसा पढ़कर अथवा 'तोडरमल्ल चटख' इसका उच्चारण कर श्रीहनुमान्जी को कपिमुद्रा दिखावे ।
।। माला-मन्त्र ।।
ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो हनुमते त्रैलोक्याक्रमण-पराक्रम-श्रीरामभक्त ! मम परस्य च सर्वशत्रून् चतुर्वर्णसम्भवान् पुं-स्त्री-नपुंसकान् भूत- भविष्यद्-वर्तमानान् नानादूरस्थ-समीपस्थान् नाना-नामधेयान् नानासङ्करजातिजान् कलत्र-पुत्र-मित्र भृत्य-बन्धु-सुहृत्-समेतान् प्रभुशक्ति-सहितान् धन-धान्यादि-सम्पत्तियुतान् राज्ञो राजपुत्र- सेवकान् मन्त्रि-सचिव-सखीन् आत्यन्तिकक्षणेन त्वरया एतद्दिनावधि नानोपायैर्मारय मारय शस्त्रेश्छेदय छेदय अग्निना ज्वालय ज्वालय दाहय दाहय अक्षयकुमारवत् पादतलाक्रमणेनाऽनेन शिलातले आत्रोटय आत्रोटय घातय घातय वध वध भूतसङ्घः सह भक्षय भक्षय क्रुद्धचेतसा नखैविंदारय विदारय देशादस्मादुच्चाटय उच्चाटय पिशाचवत् भ्रंशय भ्रंशय भ्रमय भ्रमय भयातुरान् विसंज्ञान् सद्यः कुरु कुरु भस्मीभूतान् उद्धलय उर्दूलय भक्तजनवत्सल ! सीताशोकापहारक ! सर्वत्र माम् एनं च रक्ष रक्ष हाहाहा ह्रुं ह्रुं ह्रुं घे घे घे हुं फट् स्वाहा ॥१॥
ॐ नमो भगवते हनुमते महावलपराक्रमाय महाविपत्ति- निवारकाय भक्तजनमनःकामना-कल्पद्रुमाय दुष्टजन-मनोरथ- स्तम्भनाय प्रभञ्जनप्राणप्रियाय स्वाहा, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः मम शत्रून् शुलेन छेदय छेदय अग्निना ज्वालय ज्वालय दाहय दाहय उच्चाटय उच्चाटय हुं फट स्वाहा ।। २ ।॥
इति माळामन्त्रः ।
नोट - 'ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्र' से लेकर 'उच्चाटय उच्चाटय हूं फट् स्वाहा' तक माला मन्त्र है। इसके पश्चात् एकाग्र चित्त होकर श्लोक 1 से लेकर 'प्रमोदते मारुतजप्रसादात्' श्लोक 25 तक शत्रुंजयहनुमत्स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
सत्रुञ्जय हनुमत्स्तोत्रम् ध्यानः-
श्रीमन्तं हनुमन्त-मार्तरिपुभिद्-भूभृत्तरुम्राजितं
चाल्यद्-बालधि-वन्धवैरिनिचयं चामीकराद्रिप्रभम् ।
अष्टौ रक्त-पिशङ्ग-नेत्र-नलिनं भूभङ्गमङ्ग-स्फुरत्
प्रोद्यच्चण्ड-मयूख-मण्डल-मुखं दुःखापहं दुःखिनाम् ॥१॥
कौपीनं कटिसूत्र-मौञ्ज्यजिनयुगदेहं विदेहात्मजा
प्राणाधीश-पदारविन्दनिरतं स्वान्तं कृतान्तं द्विषाम् ।
ध्यात्वैवं समराङ्गणस्थितमथानीय स्व-हृत्पङ्कजे
सम्पूज्या-ऽखिल-पूजनोक्त-विधिना-सम्प्रार्थयेत् प्रार्थितम् ॥ २॥
।।मूल-पाठ।।
हनुमन्नञ्जनीसूनो ! महाबलपराक्रम ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१।।
मर्कटाधिप ! मार्तण्ड मण्डल-ग्रास-कारक,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।२।।
अक्षयन्नपि पिङ्गाक्षक्षितिजाशुग्क्षयङ्र ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।३।।
रुद्रावतार ! संसार-दुःख-भारापहारक,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।४।।
श्रीराम-चरणाम्भोज-मधुपायत-मानस ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।५।।
बालिप्रथमक्रान्त सुग्रीवोन्मोचनप्रभो ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।६।।
सीता-विरह-वारीश-मग्न-सीतेशतारक ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।७।।
रक्षोराज-प्रतापाग्नि-दह्यमान-जगधन ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।८।।
ग्रस्ताऽशैजगत्-स्वास्थ्य-राक्षसाम्भोधिमन्दर ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।९।।
पुच्छ-गुच्छ-स्फुरद्वीर-जगद्-दग्धारिपत्तन ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१०।।
जगन्मनो-दुरुल्लंघ्य-पारावार विलङ्घन ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।११।।
स्मृतमात्र-समस्तेष्ट-पूरक ! प्रणत-प्रिय ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१२।।
रात्रिश्वर-चमूराशि-कर्तनैक-विकर्तन ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१३।।
जानकी-जानकीज्यानि-प्रेमपात्र ! परन्तप ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१४।।
भीमादिक-महावीर-वीरवेशावतारक ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१५।।
वैदेही-विरह-क्लान्त रामरोषैक-विग्रह ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१६।।
वज्राङग-नख-दंष्ट्रश ! वज्रिवज्रावगुण्ठन ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१७।।
अखर्व-गर्व-गंधर्व-पर्वतोद्-भेदन-स्वर ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१८।।
लक्ष्मणप्राण-सन्त्राण त्राता तीक्ष्णकरान्वय ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।१९।।
रामाधिविप्रयोगात ! भरताद्यार्तिनाशन ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।२०।।
द्रोणाचल-समुत्क्षेप-समुत्क्षिप्तारि-वैभव ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।२१।।
सीताशीर्वाद-सम्पन्न ! समस्तावयवाक्षत ,
लोलल्लाङगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।२२।।
इत्येवमश्वत्थ-तलोपविष्टः शत्रुञ्जयं नाम पठेत् स्वयं यः ।
स शीघ्रमेवास्त-समस्तशत्रुः प्रमोदते मारुतज-प्रसादात् ॥२३ ॥
।। इति शत्रुञ्जय-हनुमत्स्त्रोतं ।।