वात रोग निवारण हेतु हनुमान मंत्र
Hanuman Mantra for Gout Disease Treatment
वात रोग निवारण हेतु हनुमान मंत्र
हनुमानजी पवन पुत्र हैं और ग्यारहवें रुद्र के अवतार हैं। अत: वायु से घनिष्ठ सम्बन्ध है। एकादश रुद्रों के सम्बन्धमें शास्त्रों का एक मत है कि आत्मा सहित दसों वायु (1) प्राण, (2 ) अपान, (3 ) व्यान, (4 ) समान, (5 ) उदान, (6 ) देवदत्त, (7 ) कूर्म, (8 ) कृकल (9 ) धनंजय और (10 ) नाग-भी ग्यारह रुद्र हैं। इन वायुओं पर जो विजय प्राप्त कर लेता है, वह योगी प्राणवायु को ब्रह्माण्ड में स्थिर कर लेने में समर्थ हो जाता है। तभी उसे अष्टसिद्धियाँ भी प्राप्त होती है। हनुमानजी को अष्टसिद्धियाँ प्राप्त हैं।
वात रोग निवारण हेतु हनुमान मंत्र प्रयोग विधि
1. सर्वप्रथम श्रीहनुमानजी का तस्वीर सामने रखें।
2. फिर पूर्वाभिमुख होकर आसनपर बैठ जाय और पञ्चोपचार (चन्दन, अक्षत, फूल, धूप, दीप) से हनुमानजी का पूजन करे।
3. ईशानकोण में शुद्ध घी का एक दीपक भी जलाकर रख दे।
4. अब न्यास करें -
न्यास
ॐ ह्रां अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ हूं रामदूताय मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रैं वायुपुत्राय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रौं अग्निगर्भाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रः ब्रह्मास्त्र- निवारणाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा। ॐ रामदूताय शिखायै वषट् ।
ॐ वायुपुत्राय कवचाय हुम् ।
ॐ अग्निगर्भाय नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ब्रह्मास्त्रनिवारणाय अस्त्राय फट् ।।
हनुमान जी का ध्यान
ध्यायेद् बालदिवाकरद्युतिनिभं देवारिदर्पापहं
देवेन्द्रप्रमुखं प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा ।
सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं
संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम् ॥
5. इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र का कम-से-कम 5 माला प्रतिदिन करने का विधान है। अनुष्ठान-विधि में 11 दिनों तक नित्य 3 हजार माला का जप करने का विधान है। जप के बाद दशांश जप का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये। इससे व्याधि शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। अनुष्ठान-विधि से जप करने पर ब्रह्मचर्य, अक्रोध, सत्यभाषण और सात्त्विक आहार या फलाहार की विधि का पालन वश्यक है। इस विधि से जप करनेपर सफलता निश्चित मिलती है।