आदि गुरु शंकराचार्य ने किस सिद्धि से परकाया प्रवेश की थी?
हनुमान चालीसा के आठ सिद्धि कौन कौन से हैं ?
With what accomplishments how did Adi Guru Shankaracharya enter Parakaya?
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित हनुमान चालीसा में अष्ट सिद्धि की बात की गई है। हनुमान चालीसा में एक चौपाई है जिसमें कहा गया है कि
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
अर्थात सीता माता ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि हनुमान जी जिस पर प्रसन्न हो उसको आठ सिद्धियां और नौ निधियां प्रदान कर सकते हैं। यह अष्ट सिद्धि कौन-कौन से हैं आइए आज इस बात पर चर्चा करते हैं।
लेकिन इन अष्ट सिद्धियों के ऊपर चर्चा करने से पूर्व इस बात की भी चर्चा करना बेहद आवश्यक है कि हनुमान चालीसा में जो जीवन के मंत्र छुपे हैं वे क्या है? आखिर क्यों हनुमान चालीसा का पाठ बच्चों के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है।
हनुमान चालीसा का प्रारंभ दोहा से होता है जिसमें गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊॅं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरॏं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार।।
अब यहां श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि का क्या अर्थ है?
तो देखिए मुकुरु का अर्थ होता है दर्पण। गोस्वामी जी कहते हैं कि अपने गुरु के चरण रज को लेकर अपने मन के दर्पण को रगड़-रगड़ कर, साफ कर मैंने अपने मन को शुद्ध किया है जो पहले अज्ञान की धूली से मलिन हो गई थी। यहां गोस्वामी जी यह शिक्षा दे रहे हैं कि प्रारंभ एक सच्चे गुरु के सानिध्य में करो जो तुम्हें उचित ज्ञान प्रदान करेगा। तब तुम अपनी मनोदशा सुधार पाओगे जिस मनोदशा पर तुम्हारी आगे की सफलता टिकी है। अब आगे कहते हैं -
बरनऊॅं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
अर्थात अपने मन को शुद्ध कर अब मैं भगवान श्रीराम के विमल जस का बखान करता हूं जो चार फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करने वाला है। सिर्फ विमल जस का हीं बखान क्यों, ताकि स्मृति पटल पर बस निर्मल गुण हीं रहे। अब देखिए गोस्वामी जी यहां शिक्षा दे रहे हैं कि जीवन में सिर्फ सकारात्मक पक्ष को पकड़ो। तुम्हारी यही सोच तुम्हें सफलता के उस मार्ग पर ले जाएगी जो तुम्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों की प्राप्ति कराएंगे। यह बहुत बड़ी सीख है क्योंकि खासकर छात्र जीवन में भटकाव बड़ा भारी होता है। नकारात्मक बातें जल्दी प्रभावित करती हैं। नशा, क्राइम, आदि आदि। जब तुम सकारात्मक पक्ष को पकड़ना सीख जाओगे तो पूरे जीवन में सुखी आनंदित रहोगे। इसीलिए तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराम द्वारा सीता के त्याग की चर्चा रामचरितमानस में नहीं की। गलत बातों की चर्चा से भी बचो।
अब आगे कहते हैं कि
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरॏं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार।।
देखिए यहां पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण विनम्रता के गुण को रेखांकित किया गया है। गोस्वामी जी कहते हैं कि मैं अपने को बुद्धिहीन मानकर आपके शरणागत हूं अब आप हीं मुझ अज्ञानी को ज्ञान, बल बुद्धि प्रदान कर मेरे मन के विकार को, मेरे क्लेश को दूर करें। और मुझे सुख-शांति प्रदान करें।
गोस्वामी जी सफलता का मंत्र देते हुए कहते हैं कि आप ज्ञानी तभी हो सकते हैं जब आप अहंकार को त्याग कर, विनम्रता के गुण को आत्मसात कर लें। कारण तब हीं आपका गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण हो पाएगा। अन्यथा आप में अज्ञानता के कारण अपने खुद के परम ज्ञानी होने का अहंकार ढोते रहेंगे जो आपको गुरु के बताए मार्ग पर चलने न देगा। फिर आप कुछ सीख न पाएंगें।
भगवद्गीता में चौथे अध्याय के 34 वें श्लोक में कहा गया है कितद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।
अर्थात तुम गुरु के पास जाकर उनसे विनीत होकर, उनकी सेवा करो और सरलतापूर्वक प्रश्न करो। तब तत्त्वदर्शी ज्ञानी पुरुष तुझे तत्त्वज्ञान का उपदेश देंगे। क्योंकि उन्होंने सत्य का दर्शन किया है।
इस श्लोक में निरर्थक जिज्ञासा से बचने के लिए कहा गया है। शिष्य केवल गुरु से विनीत होकर सुने। विनीत भाव, सेवा और जिज्ञासा द्वारा गुरु से स्पष्ट ज्ञान प्राप्त करे। क्योंकि सच्चा गुरु स्वभाव से हीं शिष्य के प्रति दयालु होता है। और यदि शिष्य विनीत हो और सेवा में तत्पर रहे तो ज्ञान और जिज्ञासा का विनिमय पूर्ण हो जाता है। गोस्वामी जी ने दोहा के इन्हीं चार पंक्तियों में जीवन में सफलता प्राप्त करने का संपूर्ण मंत्र दे दिया है जिसे समझ कर अगर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो जीवन में अद्भुत सफलता प्राप्त होती है।
अब आठ सिद्धियाॅं कौन-कौन से हैं उस पर चर्चा करते हैं - संस्कृत के सुभाषित में एक श्लोक है-
अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा।
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः।।
अर्थ - अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व ये सिद्धियाॅं "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं।
हनुमान चालीसा के इन अष्ट सिद्धियों को अब विस्तार में समझते हैं -
1. अणिमा सिद्धि:
अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली सिद्धि अणिमा हैं। इस सिद्धि में अपने शरीर को एक अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति प्राप्त होती है। जिस प्रकार हम अपने नग्न आंखों से एक अणु को नहीं देख सकते, उसी तरह अणिमा सिद्धि प्राप्त करने वाले व्यक्ति को कोई दूसरा व्यक्ति नहीं देख सकता है। लंका में सीता जी के खोज में अपनी इसी सिद्धि का प्रयोग हनुमान जी कर सब जगह उनको बिना बाधा के ढ़ूंढते हैं।
2. महिमा सिद्धि :
इस सिद्धि में साधक जब चाहे अपने शरीर को असीमित रूप से विशाल करने में सक्षम होता है। वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता हैं। हनुमान जी लंका-दहन के समय इसी सिद्धि से अपने शरीर को, पूंछ को बढ़ा रहे थे।
3. गरिमा सिद्धि :
इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकता हैं। साधक का आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं। लंका की सभा में अंगद ने अपना पैर इसी सिद्धि के साथ जमाया था। महाभारत काल में हनुमान जी ने भीम की परीक्षा लेने में इसी सिद्धि का प्रयोग किया था और भीम उनके पूंछ को भी हिला न पाए थे।
4. लघिमा सिद्धि :
इस सिद्धि में साधक अपने शरीर को इतना हल्का बना सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं। उसके शरीर का भार ना के बराबर हो जाता है। संजीवनी बूटी लाने में पवनपुत्र हनुमान ने इसी सिद्धि का प्रयोग किया था।
5. प्राप्ति सिद्धि :
इस सिद्धि में साधक जो चाहे अपनी इच्छानुसार प्राप्त कर सकता है। प्राप्ति सिद्धि से असंभव को संभव बना लेने की क्षमता आ जाती है । वह बिना किसी रोक-टोक के किसी भी स्थान पर, कहीं भी जा सकता हैं। अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सनमुख अदृश्य होकर, साधक जहाँ जाना चाहें वही जा सकता हैं तथा उसे कोई देख नहीं सकता हैं। आचार्य चरक द्वारा बताया गया "इष्टत: दर्शनम् " सिद्धि जिसमें इच्छा से अदृश्य और दृश्यमान बनने की क्षमता कही गई है, यही है। नारद मुनि अंतर्धान होकर कहीं भी प्रकट इसी सिद्धि से होते थे। आचार्य चरक ने एक आवेश सिद्धि की भी चर्चा की है जिसमें व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने की क्षमता प्राप्त हो जाती है। वह भी इसी प्राप्ति सिद्धि का प्रकार है। इसी क्षमता का इस्तेमाल आदि गुरु शंकराचार्य ने परकाया प्रवेश में किया था।
6. प्राकाम्य सिद्धि :
साधक किसी के मन की बात को बहुत सरलता से समझ सकता हैं, फिर सामने वाला व्यक्ति अपने मन की बात की अभिव्यक्ति करें या नहीं। इस सिद्धि को प्राप्त करने वाले अघोरी आपने भी देखा होगा। ये आपके मन की बात बता देते हैं। आचार्य चरक ने इस सिद्धि को "चेतासो ज्ञानम् " यानी मन पढ़ना बताया है।
7. ईशित्व सिद्धि :
इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता है। उसमें इतनी शक्ति आ जाती है कि दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता है।
8. वशित्व सिद्धि :
इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण के नाम से भी इस सिद्धि को जानते हैं। आप इन सिद्धियों को हनुमान जी की कृपा से योग साधना द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।आचार्य चरक ने आयुर्वेद में इन अष्ट सिद्धियों को योग के नियमित अभ्यास से प्राप्त करने की विधि बताई है। उनके अनुसार जो साधक अपने शुद्ध मन को आत्मा से जोड़कर योग का अभ्यास करते हैं वह इन आठ सिद्धियों को प्राप्त कर सकते हैं ।
नौ निधियां कौन-कौन से हैं : हनुमान जी प्रसन्न होने पर जो नव निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार है
1. पद्म निधि :
पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।
2. महापद्म निधि :
महापद्म निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।
3. नील निधि :
नील निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेजसे संयुक्त होता है। उसकी संपत्ति तीन पीढ़ी तक रहती है।
4. मुकुंद निधि :
मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।
5. नन्द निधि :
नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है ।
6. मकर निधि :
मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।
7. कच्छप निधि :
कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है ।8. शंख निधि :
शंख निधि एक पीढ़ी के लिए होती है।
9. खर्व निधि :
खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं ।
***********