इच्छित वर अष्टदशाक्षर मंत्र
Method of use of Hanuman Vyapar Vriddhi Mantra
इच्छित वर अष्टदशाक्षर मंत्र
इच्छित वर अष्टदशाक्षर मंत्र का कितना जप करना चाहिए ?
इच्छित वर अष्टदशाक्षर मंत्र को मंगलवार या शनिवार को शुरू कर प्रतिदिन किसी शुभ समय स्नान एवं संध्या आदि नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर प्रारंभ करना चाहिए (सुबह या शाम या रात्रि में )। मूल मंत्र का पुरश्चरण विधि से प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए। काम से काम एक माला प्रतिदिन। सिद्ध करने के दृष्टि से कम से कम सवा लाख जप करना चाहिए। जप का दशांश हवन, हवन का दशांश मार्जन, मार्जन का दशांश तर्पण एवं तर्पण का दशांश या यथाशक्ति ब्रह्मण भोजन कराना चाहिए। मंत्र के सिद्ध हो जाने पर हनुमान जी प्रसन्न होकर साधक को इच्छित वर देते हैं।
नोट - पुरश्चरण के पांच भाग होते हैं - जप, हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण-भोजन। पुरश्चरण आरंभ करने से पहले विधिवत दीक्षा लेनी चाहिए। यह दीक्षा गुरु, देवी-देवता या उस पुस्तक से ली जाती है जिसके अध्ययन से सिद्धि पाने का प्रयास किया जा रहा हो। प्रत्येक मंत्र के जप लिए एक संख्या निर्धारित होती है। जप संख्या का दशांश से हवन करें, = यदि 10,000 जप संख्या है तो 1,000 मंत्रों से हवन करें हवन संख्या का दशांश से तर्पण करें = यदि 1,000 हवन संख्या है तो 100 मंत्रों से तर्पण करें तर्पण संख्या का दशांश से मार्जन करें =यदि 100 तर्पण संख्या है तो 10 मंत्रों से मार्जन करें। मार्जन संख्या का दशांश ब्राह्मण-भोजन कराएं = यदि 10 मार्जन संख्या है तो 1 ब्राह्मण-भोजन कराएं।
इच्छित वर अष्टदशाक्षर मंत्र न्यास
ॐ ह्रां अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ हूं रामदूताय मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रैं वायुपुत्राय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रौं अग्निगर्भाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रः ब्रह्मास्त्र- निवारणाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा। ॐ रामदूताय शिखायै वषट् ।
ॐ वायुपुत्राय कवचाय हुम् ।
ॐ अग्निगर्भाय नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ब्रह्मास्त्रनिवारणाय अस्त्राय फट् ।।
इच्छित वर अष्टदशाक्षर मंत्र ध्यान
ध्यायेद् बालदिवाकरद्युतिनिभं देवारिदर्पापहं
देवेन्द्रप्रमुखं प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा ।
सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं
संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम् ॥
ध्यान का हिंदी भावार्थ -
प्रातःकालीन सूर्यके सदृश जिनकी शरीर-कान्ति है, जो राक्षसों का अभिमान दूर करनेवाले, देवताओं में एक प्रमुख देवता, लोकविख्यात यशस्वी और अपनी असाधारण शोभा से देदीप्यमान हो रहे है, सुग्रीव आदि सभी वानर जिनके साथ हैं, जो सुव्यक्त तत्त्व के प्रेमी हैं , जिनकी आँखे अतिशय लाल-लाल है और जो पीले वस्त्रों से अलंकृत हैं, उन पवनपुत्र श्रीहनुमानजी- का ध्यान करना चाहिये।