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जया एकादशी माघ माह शुक्ल पक्ष - Jaya Ekadashi

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जया एकादशी माघ माह अगहन शुक्ल

जया एकादशी माघ माह शुक्ल पक्ष - Jaya Ekadashi

20 फरवरी, 2024, मंगलवार को माघ जया एकादशी है।


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

जया एकादशी व्रत की शुरुआत

20 फरवरी, 2024, मंगलवार को माघ जया एकादशी है। इस एकादशी व्रत 19 फरवरी को सुबह 8 बजकर 50 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन, 20 फरवरी को सुबह 9 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगा। उदया तिथि से 20 फरवरी, 2024, मंगलवार को माघ जया एकादशी है।

जया एकादशी व्रत का पारण

जया एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 21 फरवरी 2024 को सुबह 6 बजकर 59 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 15 मिनट के बीच होगा। हरि वासर समाप्त होने का समय 20 फरवरी 2024 को दोपहर 4 बजकर 19 मिनट पर हीं है।

जया एकादशी किसे कहते हैं ? जया एकादशी क्यों मनाई जाती है?

जया एकादशी माघ महीने में शुक्ल पक्ष के दौरान 'एकादशी' तिथि पर मनाई जाती है। दक्षिण भारत, विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों के कुछ हिंदू समुदायों में जया एकादशी को 'भौमी एकादशी' और 'भीष्म एकादशी' के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि यह एकादशी गुरुवार के दिन पड़े तो यह और भी शुभ होती है।

भविष्योत्तर पुराण में भगवान् श्रीशुक्ल और महाराज युधिष्ठिर के संवाद में इस एकादशी का वर्णन आता है । युधिष्ठिर महाराजने पुछा, "हे जनार्दन ! माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या संबोधन है ? यह व्रत कैसे करे ? किस देवता की पूजा करनी चाहिए?"

भगवान् श्रीशुक्ल ने उत्तर दिया, "राजेन्द्र ! सुनो ! माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते है। सब पापों का हरण करके मोक्ष देनेवाली यह उत्तम तिथि है । जो कोई भी इस व्रत का पालन करेगा उसे पिशाच योनि प्राप्त नही होगी, इसलिए प्रयत्नपूर्वक इस 'जया' एकादशी का पालन करना चाहिए ।"

जया एकादशी कथा

प्राचीन काल में स्वर्ग में देवराज इंद्र का राज था । देवगण अप्सराओंके साथ पारिजात वृक्षसे शोभित नंदनवन में विहार कर रहे थे । पचास करोड गंधर्वोके नायक देवराज इंद्रने अपनी इच्छासे वनमें विहार करते हुए नृत्य का आयोजन किया था। गंधर्वोमें प्रमुख पुष्पदंत, चित्रसेन और उसका पुत्र ये तीन थे।

चित्रसेनकी पत्नी का नाम 'मालिनी' था। मालिनी और चित्रसेन की कन्या 'पुष्पवन्ती' थी । पुष्पदन्त गंधर्व का पुत्र 'माल्यवान्' था । माल्यवान् पुष्पवन्ती के सौंदर्य पर मोहित हुआ था । ये दोनों भी इंद्र की प्रसन्नता के लिए नृत्य करने आए थे । यह दोनों भी अन्य अप्सराओं के साथ आनंद में गायन कर रहे थे । किंतु एक दूसरे पर अनुराग दृष्टि के कारण वे मोहित हो गये और उनका मन विचलित हो गया इससे वे शुद्ध गायन नही कर सके । कभी ताल गलत तो कभी गायन रुकता । इस बातसे क्रोधित और अपमानित होकर इंद्रने श्राप दिया, "आप दोनो पतित हैं। मूर्ख हैं । तुम्हारा धिक्कार हो । मेरी आज्ञाभंग करने के फलस्वरूप आप पती-पत्नी के रूप में पिशाच योनी में जन्म लेंगे।"

इंद्र से ऐसा श्राप मिलते ही दोनो बहुत दुखी हुए। हिमालयमें जाकर पिशाच योनि को प्राप्त होकर भयंकर दुख भोगते रहे । शारीरिक पातक से प्राप्त हुई इस योनी से पीडित वे पर्वतकी गुफामें भ्रमण कर रहे थे। एक दिन पिशाच पतिने अपनी पत्नीको पूछा, "हमने ऐसा कौनसा पाप किया है जिसके लिए हमें ये योनी मिली ? नरक यातनाएँ तो दुखदायक है पर पिशाच योनीमें भी दुख बहुत भयानक है। इसलिए पूर्ण प्रयत्नसे इस पाप से छुटकारा प्राप्त करना चाहिए।"

दोनो चिंतामें मग्न थे । किंतु भगवान् की कृपा से उन्हे माघ महीनेकी एकादशी तिथि प्राप्त हुई । 'जया' नामसे प्रसिद्ध यह तिथि सब तिथिमें उत्तम है । इस तिथिको उन्होनें अन्न ग्रहण नही किया, जलग्रहण नही किया, किसी जीव की हत्त्या भी नही की और कोई फल भी नही खाया। दुख से व्याकुल सुर्यास्त तक वे बरगद के वृक्ष के नीचे बैठे रहे । भयानक रात उनके सामने उपस्थित हुई पर उन्हे निद्रा तक नही आई । कौनसे भी प्रकार का सुख और कामसुख भी उन्होंने नही भोगा । रात्र समाप्त होकर सुर्योदय हुआ । द्वादशी का दिन निकला । उनसे 'जया' एकादशी के व्रत का पालन हुआ था, उन्होंने रातभर जागरण किया था। व्रतके प्रभाव से और भगवान विष्णुकी शक्ती के कारण दोनों इस योनिसें मुक्त होकर अपने पूर्वरूप को प्राप्त हुए।

उनके हृदयमें फिरसे पहले का अनुराग उत्पन्न हुआ । अलंकारसे शोभित होकर विमान में विराजमान होकर स्वर्गलोक में गए। देवराज इंद्र के सामने प्रसन्नतापूर्वक जाकर उन्हें सादर प्रणाम किया। उन्हें पूर्वरूपमें देखकर इंद्रको आश्चर्य हुआ और उन्होंने पूछा, "किस पुण्य के प्रभाव से आप पिशाच योनीसे मुक्त हुए ? मुझसे श्राप पाकर भी आप कौनसे देवता के आश्रय से शाप मुक्त हो गए?" माल्यवान ने कहा, "हे स्वामी ! भगवान् वासुदेव की कृपासे तथा 'जया' एकादशी के व्रत से हम पिशाच योनिसे मुक्त हुए।"

देवराज इंद्र ने कहा, "अब मेरे कहेनुसार आप दोनो सुधापान कीजिए । जो लोग भगवान् वासुदेव की शरण लेते है और एकादशी का पालन करते है वह हमें भी पूजनीय है।"

भगवान् श्रीशुक्ल ने कहा, "हे राजन! इसलिए एकादशी का व्रत करना चाहिए। हे नृपश्रेष्ठ ! 'जया' एकादशी ब्रह्महत्त्या के पातक से भी मुक्त करती है। जिसने 'जया' एकादशी के व्रत का पालन किया, उसने सभी प्रकार का दान तथा यज्ञोंको अनुष्ठान करने जैसा है । इस की महिमा पढने अथवा सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

जया एकादशी पूजन विधि (Jaya Ekadashi pujan vidhi)

अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।

इस दिन सूर्योदय के बाद कोई भोजन नहीं खाया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि एकादशी का व्रत पूरा रखा जा सके। हिंदू भक्त एकादशी के सूर्योदय से लेकर 'द्वादशी' तिथि (12वें दिन) के सूर्योदय तक निर्जला उपवास रखते हैं। व्रत करते समय व्यक्ति को अपने मन में क्रोध, वासना या लालच की भावना नहीं आने देनी चाहिए। यह व्रत शरीर और आत्मा दोनों को शुद्ध करने के लिए है। इस व्रत के पालनकर्ता को द्वादशी तिथि पर सम्मानित ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और फिर अपना व्रत तोड़ना चाहिए। व्रत रखने वाले को पूरी रात सोना नहीं चाहिए और भगवान विष्णु की स्तुति करते हुए भजन गाना चाहिए।

जो लोग पूर्ण उपवास नहीं रख सकते, वे दूध और फलों पर आंशिक उपवास भी रख सकते हैं। यह छूट बुजुर्ग लोगों, गर्भवती महिलाओं और शरीर की गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए है। यहां तक ​​कि जो लोग जया एकादशी का व्रत नहीं रखना चाहते उन्हें भी चावल और सभी प्रकार के अनाज से बना भोजन खाने से बचना चाहिए। शरीर पर तेल लगाने की भी इजाजत नहीं है।

जया एकादशी पर पूरे समर्पण भाव से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भक्त सूर्योदय के समय उठते हैं और जल्दी स्नान करते हैं। पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति रखी जाती है और भक्त भगवान को चंदन का लेप, तिल, फल, दीपक और धूप चढ़ाते हैं। इस दिन 'विष्णु सहस्त्रनाम' और 'नारायण स्तोत्र' का पाठ करना शुभ माना जाता है।

जया एकादशी व्रत क्यों करते हैं? जया एकादशी व्रत से लाभ -

षट तिला एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को अनंत धन और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र से मुक्ति मिलेगी। षट तिला एकादशी पर तिल या तिल का दान करने से, भक्तों को उनके वर्तमान या पिछले जीवन में जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी। इसके अलावा जल में तिल मिलाकर तर्पण करने से भी मृत पूर्वजों को शांति मिलती है।

जया एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? जया एकादशी को खाने के पदार्थ :-

1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।

2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।

जया एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?

एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -

1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,

2. हरी सब्जियाँ,

3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,

4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,

5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,

6. शहद पूरी तरह से वर्जित

जया एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?

जया एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।

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