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पद्मिनी (कमला) एकादशी अधिमास माह कृष्ण पक्ष - Padmini Ekadashi

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पद्मिनी (कमला) एकादशी अधिमास

पद्मिनी (कमला) एकादशी पुरुषोत्तमी एकादशी अधिमास माह शुक्ल पक्ष - Padmini Ekadashi

27 मई, 2026 बुधवार को अधिमास पद्मिनी (कमला) एकादशी है।


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

पद्मिनी (कमला) एकादशी व्रत की शुरुआत

27 मई, 2026 बुधवार को अधिमास पद्मिनी (कमला) एकादशी है।

पद्मिनी (कमला) एकादशी व्रत का पारण

पद्मिनी (कमला) एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 28, मई, 2026 को सुबह 5 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 10 मिनट के बीच होगा।

पद्मिनी (कमला) एकादशी पुरुषोत्तमी एकादशी किसे कहते हैं ? पद्मिनी (कमला) एकादशी क्यों मनाई जाती है?

पद्मिनी (कमला) एकादशी अधिक मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी है। इसे पुरुषोत्तमी एकादशी भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है उस पर निर्भर करता है। अतः पद्मिनी एकादशी का उपवास करने के लिए कोई चन्द्र मास तय नहीं है। अधिक मास को लीप के महीने के नाम से भी जाना जाता है। 16 अगस्त 2023 को मलमास के खत्म होने के बाद अब तीन साल बाद 2026 में फिर से मलमास लगेगा 2026 में मलमास की शुरुआत 17 मई से होगी और इसका समापन 15 जून होगा।

पद्मिनी (कमला) एकादशी कथा

युधिष्ठिर महाराजने पूछा, "हे जनार्दन ! अधिक मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशीका नाम क्या है? इस एकादशी का पालन कैसे करना चाहिए और इस व्रत के पालन से प्राप्त होनेवाले फल के बारे में कृपया आप विस्तार वर्णन करे।

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "हे राजन! इस पवित्र एकादशी का नाम 'पद्मिनी' है। जो भी इस व्रत का पालन करता है उसे पद्मनाभ भगवान के धाम की प्राप्ति होती है। इस के पालन से सभी पापों का नाश होता है। ब्रह्मदेव भी इस एकादशी की महिमा कहने में असमर्थ है। यह एकादशी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। बहुत पहले ब्रह्मदेव ने नारद को व्रत धारण करनेवाले को ऐश्वर्य व मुक्ति प्रदान करनेवाली पद्मिनी एकादशी का महात्म्य बताया था।

दशमी के दिन से ही इस व्रत का पालन करना चाहिए। दूसरों के द्वारा बनाए हुए अन्न का सेवन वर्जित है। काँस के बर्तन में पकाया हुआ अन्न नही खाना चाहिए । उबले चावल, घी और सेंदा हुआ मक्खन नही खाना चाहिए। धरती पर चटाई बिछा के सोना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

एकादशी के दिन प्रातः काल को उठकर स्नान करना चाहिए। भगवान को चंदन, पुष्प, धूप, दीप, कर्पूर और जल अर्पण करना चाहिए। भगवान् के नाम का जप करना चाहिए। कौनसा भी प्रजल्प नहीं करे। अधिक मास में आनेवाली एकादशीको किसीने भी जल अथवा दूध प्राशन (भोजन करना) किया तो उसके व्रत का खंडन होता है। रातभर जागरण करके भगवान के नाम, रूप और गुण का वर्णन करना चाहिए। रात के पहले प्रहर तक जागरण करने से अग्निष्टोम यज्ञ करने के फल की प्राप्ति होती है। दूसरे प्रहर तक जागरण करने से वाजपेय यज्ञ का फल, रात्रि के तीन प्रहर तक जागरण करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल तथा पूरी रात जागरण करने से राजसूय यज्ञ करने का पुण्य प्राप्त होता है। द्वादशी के दिन वैष्णवों को अथवा ब्राह्मणों को अन्नदान करके व्रत पूर्ण करना चाहिए। इस प्रकार से जो भी इस व्रतका पालन करता है उसे निश्चित ही मुक्ति प्राप्त होती है।

हे अनघ! आपकी जिज्ञासानुसार मैंने इस व्रत का विधि महात्म्य बताया। बहुत पहले पुलत्स्य ऋषिद्वारा नारदमुनि को बताई गयी सुंदर कथा सुनो।

एक बार कार्तविर्यार्जुन ने रावण को पकडकर बंदी बनाया। यह देखकर पुलत्स्य मुनी कार्तवीर्यार्जुनके पास जाकर रावण को छुडवाकर लेके आए। यह सुनकर नारद ने पुलत्स्य मुनिकों नम्रतासे पूछा, "हे मुनिवर! जिस रावण ने सभी देवताओं को पराजित किया, फिर ऐसे बलवान रावण को कार्तवीर्यार्जुन ने कैसे कैद किया? कृपया इस विषय में आप बताएँ ।"

पुलत्स्य मुनिने कहा, "हे नारद! त्रेयायुग में हैहय कुल में जन्मा हुआ कार्तवीर्य नामक एक राजा था। महिष्मतीपुरी उसकी राजधानी थी। उसे सहस्र रानीयाँ थी। परंतु राज्य योग्य तरीकेसे संभाले, ऐसा एक भी पुत्र नही था। राजाने सभी व्रतोंका पालन किया था, साधुओं की सेवा की थी फिर भी उसे पुत्रप्राप्ति नही हुई। अपने राज्य की सारी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री को सौंपकर राजा तपस्या करने के लिए घने वन में चले गए। राजभवन छोड़ते समय उनकी रानी पद्मिनी ने उन्हे देखा। वो इक्ष्वाकु वंशके हरिश्चंद्र राजा की पुत्री थी। अपने पति को तपस्या के लिए जाता हुआ देखकर उसने अपने आभूषणों को त्याग दिया और अपने पति के साथ मंदार पर्वतपर चली गई।
कार्तवीर्य और पद्मिनी ने मंदार पर्वत के शिखर पर दस सहस्र वर्ष तक कठोर तपस्या की। अपने पति का क्षीण शरीर को देखकर पद्मिनी ने सती अनुसूया को पूछा, "हे पतिव्रते! दस सहस्र वर्ष तपस्या करने के पश्चात भी मेरे पति को भगवान् केशव प्रसन्न नहीं हुए। कृपया मुझे आप ऐसा व्रत बताए कि जिसके पालन से भगवान केशव प्रसन्न होकर पुत्र दे जो एक पराक्रमी राजा बने। महाराणी पद्मिनी की बातों से सती अनुसूया प्रसन्न हुई और उसने कहा, "हर 33 महिनों के पश्चात अधिक मास आता है। इस महिन में दो एकादशीयाँ आती है। पद्मिनी और परम; इस एकादशी के व्रत पालन से भगवान तुरंत प्रसन्न हो जाएंगे और तुम्हारी सभी इच्छाएँ पूरी हो जाएंगी।"

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "अनुसूया के कहे अनुसार महाराणी पद्मिनी ने इस व्रत का पालन किया। इससे केशव गरुड़ पर बैठकर वहाँ आए और उन्होंने पद्मिनी को वर माँगने का आदेश दिया। प्रथम रानी ने भगवान् को वंदन किया और प्रार्थना करने लगी। उसके बाद उन्होंने पुत्रप्राप्ति के लिए भगवान् से विनती की। भगवान ने कहा, "हे साध्वी! मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ । अधिक मास के इतना कौन सा भी मास मुझे प्रिय नहीं है। इस मास की एकादशी भी मुझे बहुत प्रिय है। तुमने मुझे प्रसन्न किया है, इसलिए निश्चित ही तुम्हारे पति की इच्छा मै पूर्ण करूँगा।"

पद्मिनी से वार्तालाप के पश्चात भगवान् कार्तवीर्य के पास आए और उन्होंने कहा, "तुम्हारी पत्नी ने एकादशी व्रत का पालन किया है इससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। इसलिए जो तुम्हारी इच्छा है वो माँगो।" राजा को बहुत ही प्रसन्नता हुई। 'हमेशा विजय प्राप्त करनेवाला बलवान पुत्र' राजा ने भगवान् के पास मांगा। उन्होंने कहा, "हे मधुसूदन ! देवता, मनुष्य, नाग, राक्षस इनसे कभी भी पराजित न होनेवाला पुत्र मुझे आप दीजिए।" इस वर को देकर भगवान् केशव वहाँ से अंतर्धान हो गए।

पहले जैसा अपना शरीर प्राप्त करके राजा-रानी अपने ऐश्वर्य संपन्न राजधानी को लौट आए। थोड़े समय के बाद पद्मिनीने बहुत ही पराक्रमी पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम जिसका कार्तवीर्य अर्जुन हुआ। उसके जैसा पराक्रमी योद्धा इस विश्व में कोई भी नही था। दशमुखी रावणकों भी उसने पराजित किया था। इस सुंदर कथा को कहकर पुलत्स्य मुनिने वहाँसे प्रस्थान किया।"

भगवान् श्रीकृष्ण ने आगे कहा, "हे अनघ ! इस प्रकार से मैंने आपको अधिक मास में आनेवाली एकादशी का महात्म्य कहा है। जो कोई भी इस व्रतका पालन करता है उसे निश्चित ही वैकुंठ की प्राप्ति होती है।"

पद्मिनी (कमला) एकादशी पूजन विधि (Padmini Ekadashi pujan vidhi)

दशमी के दिन से ही इस व्रत का पालन करना चाहिए। दूसरों के द्वारा बनाए हुए अन्न का सेवन वर्जित है। काँस के बर्तन में पकाया हुआ अन्न नही खाना चाहिए । उबले चावल, घी और सेंदा हुआ मक्खन नही खाना चाहिए। धरती पर चटाई बिछा के सोना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः काल को उठकर स्नान करना चाहिए। भगवान को चंदन, पुष्प, धूप, दीप, कर्पूर और जल अर्पण करना चाहिए। भगवान् के नाम का जप करना चाहिए।

पद्मिनी (कमला) एकादशी व्रत क्यों करते हैं? पद्मिनी (कमला) एकादशी व्रत से लाभ -

ऐसा माना जाता है कि पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है इसलिए इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है तथा सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है।

पद्मिनी (कमला) एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? पद्मिनी (कमला) एकादशी को खाने के पदार्थ :-

1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।

2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, से बनाई वस्तुएँ ।

पद्मिनी (कमला) एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?

एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -

1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,

2. हरी सब्जियाँ,

3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,

4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,

5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,

6. शहद पूरी तरह से वर्जित

पद्मिनी (कमला) एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?

पद्मिनी (कमला) एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।

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