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आठ महाद्वादशी व्रत

उन्मीलिनी महाद्वादशी व्यंजुली महाद्वादशी त्रिस्पर्शा महाद्वादशी पक्षवर्धिनी महाद्वादशी जया महाद्वादशी विजया महाद्वादशी जयंती महाद्वादशी पापनाशनी महाद्वादशी

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उन्मीलिनी महाद्वादशी  व्यंजुली महाद्वादशी त्रिस्पर्शा महाद्वादशी पक्षवर्धिनी महाद्वादशी जया महाद्वादशी  विजया महाद्वादशी जयंती महाद्वादशी पापनाशनी महाद्वादशी

॥ श्रीहरिः ॥

आठ महाद्वादशी व्रत

उन्मीलिनी महाद्वादशी व्यंजुली महाद्वादशी त्रिस्पर्शा महाद्वादशी पक्षवर्धिनी महाद्वादशी जया महाद्वादशी विजया महाद्वादशी जयंती महाद्वादशी पापनाशनी महाद्वादशी

एक बार युधिष्ठिर महाराज ने श्री सूत गोस्वामी और शौनक ऋषि के संवाद में इस आठ महाद्वादशी का वर्णन सुना है। वह इस प्रकार है : श्री सूत गोस्वामी ने कहा, "विद्वान ब्राह्मणों ! उन्मीलिनी, व्यंजुली, त्रिस्पर्शा, पक्षवर्धिनी, जय, विजय, जयंती और पापनाशिनी यह आठ महाद्वादशी है। इसमें पहले चार तिथि के अनुसार और बाद के चार नक्षत्रों के अनुसार आते है। कुछ भी हो ये सभी महाद्वादशी पाप राशियों का नाश करते है।

आठ महाद्वादशी इस प्रकार है :

1. द्वादशी के दिन भी एकादशी दिन आता हो या द्वादशी बढ़ती न हो तो उसे उन्मीलिनी महाद्वादशी कहते है।

2. द्वादशी के दिन एकादशी न आती हो पर द्वादशी तिथि को बढकर त्रयोदशी आती है तो उसे व्यंजुली महाद्वादशी कहते है। इस व्रत से अनेक पापराशियों का निर्मूलन होता है।

3. द्वादशी के सूर्योदय तक अगर एकादशी हो और त्रयोदशी के सूर्योदय तक द्वादशी हो तो उसे त्रिस्पर्शा महाद्वादशी कहते है। यह महाद्वादशी भगवान् श्रीहरि को बहुत ही प्रिय है। (अगर एकादशी दशमी दिन ही होगी तो वह महाद्वादशी नही होती)

4. अमावस्या या पूनम के वक्त जो द्वादशी आती है उसे पक्षवर्धिनी महाद्वादशी कहते है। ऐसे समय में एकादशी दिन के बजाय द्वादशी को उपवास करना चाहिए।

उपर कहे हुए सभी महाद्वादशी तिथि के अनुसार आते है और नीचे कहे हुए महाद्वादशी नक्षत्रों के अनुसार आते है।

5. ब्रह्मपुराण में वसिष्ठ ऋषि और मदंत राजा के संवाद में बताया गया है कि द्वादशी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र हो तो और वह शुक्ल पक्ष की द्वादशी हो तो उसे जया महाद्वादशी कहते है। सभी महाद्वादशी में यह सबसे पवित्र मानी जाती है।

6. विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कहा गया है की, शुक्ल पक्ष की द्वादशी को श्रवण नक्षत्र है तो उसे विजया महाद्वादशी कहा गया है। वामनदेव इसी नक्षत्र में अवतरित हुए, इसीलिए ये नक्षत्र काफी महत्त्वपूर्ण है। अगर ये द्वादशी श्रावण मास के बुधवार दिन आती हो तो यह अवर्णनीय है। इस दिन विशेष करके वामनदेव की लीलाओं का श्रवण और कीर्तन करना चाहिए।

7. शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अगर रोहिणी नक्षत्र हो तो उसे जयंती महाद्वादशी कहा जाता है। भगवान् श्रीकृष्ण रोहिणी नक्षत्र पर जन्मे थे इसीलिए ये महाद्वादशी बहुत ही महान है। इस दिन विशेष करके भगवान् श्रीकृष्ण के जन्मलीला का श्रवण करना चाहिए।

8. शुक्ल पक्ष के द्वादशी को पुष्य नक्षत्र आता हो तो उस द्वादशी को पापनाशनी महाद्वादशी कहा जाता है। इस महाद्वादशी के पालन करने से 1000 एकादशियों का फल मिलता है।

शास्त्रो में अगर बहुत फलप्राप्ति दी भी हो लेकिन बुद्धिमान भक्त को केवल भगवान् की अनन्य भक्ति प्राप्त करने की इच्छा से ही इस व्रत का पालन करना चाहिए। जब भी महाद्वादशी आती हो तभी शुद्ध भक्तों को उसका मान रखना चाहिए। उस वक्त एकादशी न करते हुए महाद्वादशी का उपवास करना चाहिए।

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