सफला एकादशी पौष माह कृष्ण पक्ष - Saphala Ekadashi
सफला एकादशी पौष माह कृष्ण पक्ष - Saphala Ekadashi
7 जनवरी 2024, रविवार को सफला एकादशी का व्रत रखा जायेगा।
आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
सफला एकादशी किसे कहते हैं ? सफला एकादशी क्यों मनाई जाती है?
सफला एकादशी पौष माह के कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि को मनाते हैं। इस दिन भगवान् नारायण की पूजा की जाती है। यह एकादशी कल्याण करनेवाली है। 'सफला' एकादशी को विशेष रूप से दीप-दान करने का विधान है। इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करनेसे मनुष्य राजसूय यज्ञका फल पाता है।
सफला एकादशी का वर्णन ब्रह्मांड पुराण में मिलता है। पांडवों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से पूछने पर भगवान इसका महात्म्य युधिष्ठिर से कहते हैं -
युधिष्ठिरने पूछा- स्वामी ! पौष मास के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है ? यह बताइये। भगवान् श्रीकृष्णने कहा- राजेन्द्र ! बतलाता हूँ, सुनो; बड़ी-बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी- व्रत के अनुष्ठान से होता है। इसलिये सर्वथा प्रयत्न करके एकादशी का व्रत करना चाहिये। पौष मास के कृष्ण पक्ष में 'सफला' नाम की एकादशी होती है। उस दिन पूर्वोक्त विधान से ही विधिपूर्वक भगवान् नारायण की पूजा करनी चाहिये। एकादशी कल्याण करनेवाली है। अतः इसका व्रत अवश्य करना उचित है। जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, देवताओं में श्रीविष्णु तथा स्तनधारी में मनुष्य श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है। राजन्। 'सफला' एकादशी को नाम-मन्त्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करे। नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा नीबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषतः आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिये। इसी प्रकार धूप-दीपसे भी भगवान की अर्चना करे। 'सफला' एकादशीको विशेष रूप से दीप-दान करने का विधान है। रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिये। जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता।
सफला एकादशी कथा
नृपश्रेष्ठ ! अब 'सफला' एकादशीकी शुभकारिणी कथा सुनो। चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी। राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे। उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था। परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था। उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया। वह सदा दुराचारपरायण तथा ब्राह्मणों का निन्दक था। वैष्णवों और देवताओं की भी हमेशा निन्दा किया करता था।
अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाइयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। लुम्भक उस नगर से निकलकर गहन वन में चला गया। वहीं रहकर उस पापी ने प्रायः समूचे नगर का धन लूट लिया। एक दिन जब वह चोरी करने के लिये नगर में आया तो रात में पहरा देनेवाले सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया। किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया।
फिर वह पापी वन में लौट आया और प्रतिदिन मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन-निर्वाह करने लगा। उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष के निकट था। वहाँ बहुत वर्षों का पुराना पीपल का वृक्ष था। उस वन में वह वृक्ष एक महान् देवता माना जाता था। पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था।
बहुत दिनोंके पश्चात् एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभावसे उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया। पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा। उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला। वह निष्प्राण-सा हो रहा था। सूर्योदय होने पर भी उस पापी को होश नहीं हुआ। 'सफला' एकादशी के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा। दोपहर होनेपर उसे चेतना प्राप्त हुई। फिर इधर-उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लंगड़े की भाँति पैरों से बार-बार लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया। वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था।
राजन् ! उस समय लुम्भक बहुत-से फल लेकर ज्यों ही विश्राम स्थान पर लौटा, त्यों ही सूर्यदेव अस्त हो गये। तब उसने वृक्ष की जड़ में बहुत-से फल निवेदन करते हुए कहा- 'इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान् विष्णु संतुष्ट हों।' यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली। इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया। उस समय सहसा आकाशवाणी हुई - 'राजकुमार ! तुम 'सफला' एकादशीके प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे।' तब उसका मन परिवर्तन हुआ। उस समय से उसने अपनी बुद्धि भगवान् विष्णु के भजन में लगायी। उसके बाद वह अपने पिताश्री के पास लौट गया, पिता ने उसे राज्य दिया, अनुरूप राजकन्या के साथ विवाह करके बहुत वर्षों तक दिव्य आभूषणों की शोभा से सम्पन्न होकर उसने पंद्रह वर्षों तक उस राज्य का संचालन करता रहा। उस समय भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से उसके मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौप दिया और वह भगवान् श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोकमें नहीं पड़ता।
राजन्। इस प्रकार जो 'सफला' एकादशीका उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है। संसार में वे मनुष्य धन्य है, जो 'सफला' एकादशी के व्रत में लगे रहते हैं। उन्हीं का जन्म सफल है। महाराज! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करनेसे मनुष्य राजसूय यज्ञका फल पाता है।
सफला एकादशी पूजन विधि (Saphala Ekadashi pujan vidhi)
नारियल, सुपारी, आंवला अनार और लौंग आदि से भगवान अच्युत का पूजन करना चाहिए। इस दिन रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करने का बड़ा महत्व है। अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।
सफला एकादशी व्रत की शुरुआत
सफला एकादशी व्रत इस साल दो पड़ेंगे एक जनवरी माह में और दूसरा दिसंबर माह में।
जनवरी में सफला एकादशी Saphala Ekadashi in January
हिंदू पंचांग के अनुसार, सफला एकादशी की शुरुआत 6 जनवरी 2024 , शनिवार को देर रात 12 बजकर 41 मिनट पर होगी और 7 जनवरी 2024, रविवार को देर रात 12 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि से 7 जनवरी 2024, रविवार को सफला एकादशी का व्रत रखा जायेगा।
दिसंबर में सफला एकादशी Saphala Ekadashi in December
सफला एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 27, दिसंबर, 2024 को सुबह 7 बजकर 12 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 16 मिनट के बीच होगा।
सफला एकादशी व्रत का पारण
जनवरी में सफला एकादशी पारण Saphala Ekadashi Paran in January
सफला एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 8, जनवरी 2024 को को सुबह 7 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 20 मिनट के बीच होगा।
दिसंबर में सफला एकादशी पारण Saphala Ekadashi Paran in December
सफला एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 8, जनवरी 2024 को को सुबह 7 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 20 मिनट के बीच होगा।
सफला एकादशी व्रत क्यों करते हैं? सफला एकादशी व्रत से लाभ -
सफला एकादशी के व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थ स्नान आदि फल प्राप्त होते हैं। सफला एकादशी पर किए गए व्रत-उपवास से तन-मन निर्मल होता है। इस व्रत से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सफला एकादशी व्रत में दशमी तिथि से प्रारंभ हो जाता है|
सफला एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? सफला एकादशी को खाने के पदार्थ :-
1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।
2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।
सफला एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?
एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -
1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,
2. हरी सब्जियाँ,
3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,
4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,
5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,
6. शहद पूरी तरह से वर्जित
सफला एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?
सफला एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।