पापांकुशा एकादशी आश्विन माह शुक्ल पक्ष - Papankusha Ekadashi
पापांकुशा एकादशी आश्विन माह शुक्ल पक्ष - Papankusha Ekadashi
13 अक्टूबर, 2024, रविवार को सर्वत्र (स्मार्त ) एवं 14 अक्टूबर, 2024, सोमवार को वैष्णव आश्विन पापांकुशा एकादशी है।
आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
पापांकुशा एकादशी व्रत की शुरुआत
13 अक्टूबर, 2024, रविवार को सर्वत्र (स्मार्त ) एवं 14 अक्टूबर, 2024, सोमवार को वैष्णव आश्विन पापांकुशा एकादशी है। एकादशी तिथि 13 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 8 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन, 14 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा। एकादशी तिथि 13 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 8 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन, 14 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा।
पापांकुशा एकादशी व्रत का पारण
पापांकुशा एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 14 अक्टूबर 2024 को दोपहर 12 बजकर 48 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 7 मिनट के बीच होगा। हरि वासर समाप्त होने का समय 14 अक्टूबर 2024 को सुबह 11 बजकर 56 मिनट पर है।
पापांकुशा एकादशी किसे कहते हैं ? पापांकुशा एकादशी क्यों मनाई जाती है?
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली पाशांकुश एकादशी का महात्म्य ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवादों में वर्णन हुआ है। युधिष्ठिर महाराजने पूछा, "हे मधुसूदन ! आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम क्या है ? इस के बारे में आप विस्तार से कहिए।"
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "हे नृपश्रेष्ठ ! इस एकादशी का नाम 'पाशांकुश' है। सब पापनाशनी एकादशी के महात्म्य को सुनिए! इस एकादशी को विशेष करके भगवान् पद्मनाभ की उपासना करनी चाहिए। इस एकादशी के प्रभाव से व्रत करनेवाले की इच्छा पुर्ती होकर, स्वर्गीय सुख तथा मुक्ति मिलती है। भगवान् विष्णु के केवल नाम स्मरण से विश्व के सभी तीर्थों के भ्रमण का फल प्राप्त होता है। अज्ञानवश पापकर्मों में लिप्त मनुष्य भी अगर भगवान हरि के चरणों का आश्रय ले के उन्हें प्रणाम करने से उसके नरक का मार्ग बंद हो जाता है।
जो वैष्णव शिवजी के प्रति अपराध करते है तथा जो शैव विष्णु के प्रति अपराध करते है वे दोनों भी नरक में जाते है। अश्वमेध यज्ञ करने का या सैकंडों राजसूय यज्ञ करके प्राप्त होनेवाला पुण्य ये पाशांकुश एकादशी करने के फल से 1 /14 अंश जितना भी नही है । इस एकादशी व्रत के पालन से प्राप्त होनेवाला पुण्य और कौन से भी व्रत से प्राप्त नही होता। इसलिए यह एकादशी भगवान् विष्णु को सबमें प्रिय है।
हे राजन् ! जब व्यक्ति एकादशी का व्रत नही करता, तब से पापपुरुष उसके शरीर में वास करता है। इस व्रत के पालनसे व्यक्ति को स्वर्गीय सुख, संपत्ति, सुंदर स्त्री और धान्य प्राप्त होता है। जो इस एकादशी का पालन करके रातभर जागरण करता है उसे निश्चित ही वैकुंठ की प्राप्ति होती है।
भगवान् श्रीकृष्ण ने आगे कहा, "हे राजन! इस एकादशी के पालन से व्यक्ति अपने पिता का, माता का तथा पत्नी के 10 पीढ़ियों का उद्धार करता है। अपने बचपन में, यौवनावस्था में अथवा वृद्धावस्था में जो कोई भी इस व्रत का पालन करता है उसे भौतिक अस्तित्व से होनेवाले दुख भोगने नहीं पड़ते। जो कोई भी इस पाशांकुश अथवा पापांकुश व्रत का पालन करता है वो सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक प्राप्त करता है। इस दिन सोना, तिल, छाता, जूते, पानी, जमीन (भूमि) और गाय दान करने से दाता को यमके द्वार नही जाना पड़ता। जिंदा होकर भी जो पुण्यकर्म नही करता उसे मृत ही कहा जा सकता है। उसका श्वास लेना भी लोहार के धौकनी जैसा ही है।
हे नृपश्रेष्ठ! जो मनुष्य दूसरों के लिए यज्ञ करता है, कुएँ और सरोवर की खुदाई करता है, भूमि दान देता है अथवा दूसरे पुण्यकर्म करता है उसे यमलोक जाना नही पड़ता। गतजन्मों के अथवा पूर्वजन्मके पुण्यकर्मों के कारण ही लोग धनी, कुलवान, निरोगी तथा आयुष्यमान होते है। एकादशी व्रत के पालन से प्रत्यक्षतः कृष्णभक्ति मिलती है, तो अप्रत्यक्षतासे भौतिक सुख-सुविधा मिलती है।
पापांकुशा एकादशी कथा
प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था, वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप कर्मों में बीता।
जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिये को लेने आए और यमदूत ने बहेलिये से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे। यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, हे ऋषिवर! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं।
कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करके को कहा।
महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत पूजन के बल से भगवान की कृपा से वह विष्णु लोक को गया। जब यमराज के यमदूत ने इस चमत्कार को देखा तो वह बहेलिया को बिना लिए ही यमलोक वापस लौट गए।पापांकुशा एकादशी पूजन विधि (Papankusha Ekadashi pujan vidhi)
अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।
पापांकुशा एकादशी के दिन भक्त पूरी रात जागते हैं और भगवान विष्णु के नाम पर भजन और कीर्तन करते हैं।
पापांकुशा एकादशी व्रत क्यों करते हैं? पापांकुशा एकादशी व्रत से लाभ -
षट तिला एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को अनंत धन और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र से मुक्ति मिलेगी।
पापांकुशा एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? पापांकुशा एकादशी को खाने के पदार्थ :-
1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।
2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।
पापांकुशा एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?
एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -
1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,
2. हरी सब्जियाँ,
3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,
4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,
5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,
6. शहद पूरी तरह से वर्जित
पापांकुशा एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?
पापांकुशा एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।