पुत्रदा एकादशी पौष माह शुक्ल पक्ष - Putrada Ekadashi
पुत्रदा एकादशी पौष माह शुक्ल पक्ष - Putrada Ekadashi
21 जनवरी, 2024, रविवार को पौष पुत्रदा एकादशी है।
आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
पुत्रदा एकादशी व्रत की शुरुआत
21 जनवरी, 2024, रविवार को पौष पुत्रदा एकादशी है। इस एकादशी व्रत 20 जनवरी को संध्याकाल 07 बजकर 26 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन, 21 जनवरी को संध्याकाल 07 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा।
पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण
पुत्रदा एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 22, जनवरी 2024 को सुबह 7 बजकर 13 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर21 मिनट के बीच होगा। पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - सुबह 7 बजकर 9 मिनट है।
पुत्रदा एकादशी किसे कहते हैं ? पुत्रदा एकादशी क्यों मनाई जाती है?
पुत्रदा एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को मनाते हैं। इस दिन भगवान् नारायण की पूजा की जाती है। यह एकादशी सब पापों को हरनेवाली है। 'पुत्रदा' एकादशी को विशेष रूप से दीप-दान करने का विधान है। 'पुत्रदा' एकादशी का व्रत करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी का वर्णन ब्रह्मांड पुराण में मिलता है। पांडवों द्वारा भगवान श्रीशुक्ल से पूछने पर भगवान इसका महात्म्य युधिष्ठिर से कहते हैं -
युधिष्ठिर बोले- श्रीकृष्ण । कृपा करके शुक्लपक्ष की एकादशी का महत्त्व बतलाइये। उसका क्या नाम है ? कौन-सी विधि है ? तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?
भगवान् श्रीकृष्णने कहा- राजन् ! पौष के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी है, उसे बतलाता हूँ, सुनो। महाराज। संसार के हित की इच्छा से मैं इसका वर्णन करता हूँ। राजन् । पूर्वोक्त विधि से ही यत्नपूर्वक इसका व्रत करना चाहिये। इसका नाम 'पुत्रदा' है। यह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है। समस्त कामनाओं तथा सिद्धियोंके दाता भगवान् नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं। चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है।
पुत्रदा एकादशी कथा
पूर्वकाल की बात है, भद्रावती पुरी में राजा सुकेतुमान् राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम चम्पा था। राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ। इसलिये दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोक में डूबे रहते थे। राजा के पितर उनके दिये हुए जल को शोकोच्छ्वास से गरम करके पीते थे। 'राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हमलोगों का तर्पण करेगा' यह सोच-सोचकर पितर दुःखी रहते थे।
एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गये। पुरोहित आदि किसी को भी इस बात का पता न था। मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन में राजा भ्रमण करने लगे। मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की। जहाँ-तहाँ रीछ और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे। इस प्रकार घूम-घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गया। राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे जल की खोजमें इधर-उधर दौड़ने लगे। किसी पुण्य के प्रभावसे उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत-से आश्रम थे। शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमोंकी ओर देखा। उस समय शुभकी सूचना देनेवाले शकुन होने लगे। राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फलकी सूचना दे रहा था।
सरोवर के तट पर बहुत-से मुनि वेद-पाठ कर रहे थे। उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे। वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करनेवाले थे। जब राजा ने हाथ जोड़कर बारम्बार दण्डवत् किया, तब मुनि बोले- 'राजन् ! हमलोग तुम पर प्रसन्न हैं।' राजा बोले- आपलोग कौन हैं? आपके नाम क्या हैं तथा आपलोग किसलिये यहाँ एकत्रित हुए है ? यह सब सच-सच बताइये ।
मुनि बोले- राजन् ! हमलोग विश्वेदेव हैं, यहाँ स्रानके लिये आये हैं। माघ निकट आया है। आज से पाँचवें दिन माघ का मास आरम्भ हो जायगा। आज ही 'पुत्रदा' नामकी एकादशी है, जो व्रत करने वाले मनुष्यों को पुत्र देती है।
राजा ने कहा- विश्वेदेवगण ! यदि आपलोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये। मुनि बोले- राजन् ! आज के ही दिन 'पुत्रदा' नामकी एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रतका पालन करो। महाराज ! भगवान् केशव के प्रसाद से तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होगा।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- युधिष्ठिर! इस प्रकार उन मुनियोंके कहने से राजा ने उत्तम व्रत का पालन किया। महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का अनुष्ठान किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारम्बार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये। तदनन्तर रानी ने गर्भ धारण किया। प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिताको संतुष्ट कर दिया। वह प्रजाओं का उत्तम प्रजापालक था। इसलिए, हे राजन! 'पुत्रदा' व्रत अवश्य करना चाहिए। जो कोई भी इस व्रत का पालन करता है उसे पुत्र की प्राप्ति होकर वह मनुष्य स्वर्गप्राप्त करता है।" "जो इस व्रत की महिमा पढ़ेगा, सुनेगा या कहेगा उसे अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होगी।"
पुत्रदा एकादशी पूजन विधि (Putrada Ekadashi pujan vidhi)
अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।
पुत्रदा एकादशी व्रत क्यों करते हैं? पुत्रदा एकादशी व्रत से लाभ -
पुत्रदा एकादशी के व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थ स्नान आदि फल प्राप्त होते हैं। पुत्रदा एकादशी पर किए गए व्रत-उपवास से तन-मन निर्मल होता है। इस व्रत से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी व्रत में दशमी तिथि से प्रारंभ हो जाता है|
पुत्रदा एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? पुत्रदा एकादशी को खाने के पदार्थ :-
1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।
2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।
पुत्रदा एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?
एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -
1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,
2. हरी सब्जियाँ,
3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,
4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,
5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,
6. शहद पूरी तरह से वर्जित
पुत्रदा एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?
पुत्रदा एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।