उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष माह अगहन कृष्ण पक्ष - Utpanna Ekadashi

उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष माह अगहन कृष्ण पक्ष - Utpanna Ekadashi
आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
उत्पन्ना एकादशी किसे कहते हैं ? उत्पन्ना एकादशी क्यों मनाई जाती है?
उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष माह जिसे अगहन के नाम से भी जानते हैं, उसके कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि को मनाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता एकादशी की भी पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की शक्तियों में से एक देवी एकादशी ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है।
उत्पन्ना एकादशी का वर्णन भविष्योत्तर पुराण एवं पद्मपुराण में मिलता है। पांडवों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से उत्पन्ना एकादशी तिथि की उत्पत्ति के विषय पर पूछे जाने पर बताया।
भविष्योत्तर पुराण के प्रसंग में नैमिष्यारण्य में एकत्रित हुए सभी ऋषियोंको सूत गोस्वामी बताते हैं, "भगवान् श्रीकृष्णने अर्जुनको बताये अनुसार जो नियमपूर्वक एकादशीव्रत करता है, उसे इस जन्म में आनंद और अगले जन्म में वैकुट लोक की प्राप्ति होती है ।"
एक बार अर्जुनने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा, "हे जनार्दन ! एकादशी के दिन पूरा उपवास करने से या केवल रात को खाने से या केवल दोपहर में प्रसाद लेने से क्या लाभ मिलता है ?".
तब भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "हे अर्जुन हेमंत ऋतु के प्रारंभ के मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी करनी चाहिए। प्रातः काल उठकर इस का प्रारंभ करे । दोपहर में स्नान करके शुद्ध होना चाहिए। स्नान करते हुए पृथ्वी माता की इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए -
अश्वकान्ते रथक्रान्ते विष्णुकान्ते वसुन्धरे ।
मृत्तिका हर मे पापं यन्मया पूर्वसंचितम् ।।
अवक्रान्ते! हे रथक्रान्ते हे विष्णुक्रान्ते! हे वसुंधरे ! हे मृत्तिके ! हे पृथ्वीमाता ! पूर्वजन्मों के मेरे सभी पापों को नष्ट कर दो, जिससे में उच्चध्येय (भगवत्थाम) की प्राप्ति कर सकूं।'
उसके बाद भगवान श्रीगोविंद की पूजा करनी चाहिए।
उत्पन्ना एकादशी कथा
एक बार देवराज इंद्र सब देवताओं के साथ श्रीविष्णु के पास गये और इस तरह प्रार्थना करने लगे, "हे जगन्नाथ हे पूर्ण पुरूषोत्तम भगवान्! हमारा प्रणाम स्वीकार करें। आप सबके आश्रय है। आप ही सबके माता-पिता है। आप सभी का सृजन, पालन, विनाश करनेवाले है। आप धरती, आकाश समेत सभी ब्रह्मांडों का हित करनेवाले है। आप ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश है। यज्ञ, तपस्या और वैदिक मंत्रो के स्वामी तथा भोक्ता आप है इस जगत में ऐसी कोई भी ( धराधर) वस्तु नहीं जिस पर आपका नियंत्रण न हो। संपूर्ण जगत के चर-अचर वस्तु के स्वामी तथा नियंत्रक आप ही है। हे पूर्ण पुरूषोत्तम ! हे देवेश्वर! हे शरणागत वत्सल ! हे योगेश्वर दानवा ने सभी देवताओं को स्वर्गसे भगा दिया है और भय से उन्होंने आपके चरणों की शरण ली है। कृपया उनकी रक्षा करें। हे जगन्नाथ स्वर्ग से इस लोकपर पतन होकर हम इस दुःखसागर में डूब रहे हैं। कृपया हम पर आप प्रसन्न होईये ।
इस प्रकार इंद्रकी दया की प्रार्थना सुननेपर भगवान् श्रीविष्णुने पूछा, "ऐसा कौन सा अविजयी दानव है, जिससे देवता पराजित हो रहे हैं? उसका नाम क्या है ? उसके शक्ति का स्रोत क्या है ? हे इंद्र, निर्भय होकर सभी जानकारी हमें कहो ।"
दानवों के सामर्थ्य से पहले ही सभी देवता भयभीत थे। पर अब भगवान श्रीविष्णु के नेतृत्व में निर्भय होकर देवता रणभूमि में पहुंचे। उन्हें देखकर राक्षस क्रोधित हो गये । भगवान ने सभी असुरोको पराजित किया, परंतु मुर को पराजित करना कठिन लगने लगा। अनेक अस्त्र-शस्त्र का उपयोग करने पर भी भगवान मुर राक्षस को मार नहीं सके। दस हजार वर्ष तक दोनों में बाहुयुद्ध चला, अंतमें मुर राक्षस को पराजित करके भगवान बद्रिकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में विश्राम करने पधारे।
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे, "हे अर्जुन ! उस असुर ने गुफा तक पीछा करके उस में प्रवेश किया और और विष्णु को निद्रावस्था में मारने का विचार किया। उस समय उनके शरीर से एक तेजस्वी कन्या बाहर निकली। वह शस्त्रों से परिपूर्ण थी, उसने मुर राक्षस से बहुत समय तक युद्ध करके उसका वध किया | शेष दानव भयभीत होकर पाताल लोक में गये । श्रीविष्णु ने निद्रा से जाग कर मूर राक्षस का शव और उनके सामने हाथ जोड़के खड़ी हुई कन्या देखी तो आश्चर्य से पूछने लगे, "तुम कौन हो ?" उस देवीने उत्तर दिया, "हे भगवान! मैं आपके शरीर से उत्पन्न हुई है और इस असुर का मैने वध किया है। आप को निद्रावस्था में देखकर मारने के लिए आनेवाले इस असुर का मुझे वध करना पड़ा।
भगवान श्रीविष्णु ने कहा, "हे देवी! आपके इस कार्य से मैं प्रसन्न हूँ । तुम मनचाहा वरदान माँग लो।" जब देवी ने वरदान मांगा तब भगवान् श्रीविष्णु ने कहा, "तुम मेरी आध्यात्मिक शक्ती हो, एकादशी दिन उत्पन्न होने के कारण तुम्हारा नाम एकादशी होगा। जो भी एकादशी व्रत करेगा उसे अक्षय सुख की प्राप्ति होगी।
"उस दिन से एकादशी दिन पवित्र दिन जाना जाता है। हे अर्जुन ! जो इसका पालन करेगा उसे मैं परम (उच्च) गति प्रदान करता हूँ। हे अर्जुन ! एकादशी और द्वादशी एक ही तिथि में होने पर उस एकादशी को सर्वोच्च माना गया है। एकादशी के दिन मैथुन, अन्न, मद्य, मांस, रसोई में कास्य के वर्तन, शरीर को तेल लगाना वर्जित है। जो इसका महात्म्य जानकर व्रत करेगा उसे अधिक फलप्राप्ति होगी।"
उत्पन्ना एकादशी पूजन विधि (Utpanna Ekadashi pujan vidhi)
अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।
उत्पन्ना एकादशी व्रत क्यों करते हैं? उत्पन्ना एकादशी व्रत से लाभ -
उत्पन्ना एकादशी के व्रत के प्रभाव से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थ स्नान आदि फल प्राप्त होते हैं। उत्पन्ना एकादशी पर किए गए व्रत-उपवास से तन-मन निर्मल होता है। इस व्रत से उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। उत्पन्ना एकादशी व्रत में दशमी तिथि से प्रारंभ हो जाता है|
एकादशी किसकी बेटी है?
एकादशी श्रीहरि भगवान विष्णु से उत्पन्न हुई थी,अत: वह भगवान विष्णु की बेटी है।
उत्पन्ना एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? उत्पन्ना एकादशी को खाने के पदार्थ :-
1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।
2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।
उत्पन्ना एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?
एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -
1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,
2. हरी सब्जियाँ,
3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,
4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,
5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,
6. शहद पूरी तरह से वर्जित
उत्पन्ना एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?
उत्पन्ना एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।