मोहिनी एकादशी वैशाख माह शुक्ल पक्ष - Mohini Ekadashi
मोहिनी एकादशी वैशाख माह शुक्ल पक्ष - Mohini Ekadashi
19 मई, 2024, रविवार को वैशाख मोहिनी एकादशी है।
आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
मोहिनी एकादशी व्रत की शुरुआत
19 मई, 2024, रविवार को वैशाख मोहिनी एकादशी है। एकादशी 18 मई, को सुबह 11 बजकर 22 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन, 19 मई को दोपहर 1 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगा। उदया तिथि से 19 मई, 2024, शुक्रवार को वैशाख मोहिनी एकादशी है।
मोहिनी एकादशी व्रत का पारण
मोहिनी एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 20 मई 2024 को सुबह 5 बजकर 28 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 12 मिनट के बीच होगा।
मोहिनी एकादशी किसे कहते हैं ? मोहिनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?
सूर्य पुराण में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली मोहिनी एकादशी की महिमा का वर्णन है।
महाराज युधिष्ठिरने भगवान् श्रीकृष्ण को पूछा, "हे जनार्दन ! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम क्या है ? इस व्रतका पालन कैसे करे ? इसे करने से क्या पुण्य प्राप्त होता है, कृपया आप विस्तारसे कहिए।"
भगवान् श्रीकृष्णने कहा, "हे धर्मपुत्र ! ध्यान से सुनिए ! जो कथा वशिष्ठ मुनिने प्रभू रामचंद्र को सुनायी थी वह मै आपको कहता हूँ।"
मोहिनी एकादशी कथा
पूर्व काल में प्रभु रामचंद्र वशिष्ठ महाराज को पूछने लगे, "हे आदरणीय ऋषिवर ! सीताजी के विरह से मैं अत्यंत निराश हूँ। कृपया आप हमें ऐसा व्रत बताईये जिसके प्रभाव से सब पापोंसे और दुःखों से मुक्ति मिले।"
प्रभु रामचंद्रजी के आध्यात्मिक गुरु वशिष्ठजी ने कहा, "प्रिय राम! आप बहुत बुद्धिमान है! आपके पवित्र नाम से ही सभी प्राणियों के दुःख दूर होते है, उनका जीवन मंगलमय होता है। फिर भी सभी जीवों के उद्धार के लिए पूछा गया यह प्रश्न प्रशंसनीय है।
अब मैं आपको इस व्रत की विस्तारपूर्वक कथा कहता हूँ। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी आती है वो बहुत ही मंगलकारक है, इस व्रत के पालन से व्यक्ति संसारके दुःखों से, अनेक पापों से तथा भौतिक भ्रम से मुक्त होता है।"
"प्राचीन काल में सरस्वती नदी के किनारे रम्य भद्रावती नामक राज्य था। धृतिमान नामक राजा वहाँ राज्य करता था। चंद्रवंश में जन्मा यह राजा सहिष्णु और सत्यवादी था। उसी शहर में धनपाल नामक एक वैश्य था जो बहुत ही पुण्यवान वैष्णव था। जनहित हेतू उस भक्त धनपाल ने नगर में अनेक धर्मशाला, रुग्णालय, बड़े मार्ग, पाठशाला, बाजार और भगवान् विष्णु के मंदिर की स्थापना की थी। पीने के पानी के कुएँ, शुद्ध जल का तालाब तथा अन्नछत्र पूरे नगर में बनाए थे । इस प्रकार जनकल्याण के लिए अपने धन का उपयोग योग्य तरीके से करते हुए अपना नाम धनपाल सचमुच सार्थक किया। सबका हित चिंतनेवाला, सब के उपर प्रेम रखनेवाले इस वैष्णव के पाँच पुत्र थे। समन, द्युतिमन, मेधवी, सुकीर्ति और धृष्टबुद्धि ये उनके नाम थे। इन सभी में धृष्टबुद्धी बहुत पापी और दुराचारी था। दुष्ट व्यक्तियों का संग, व्यभिचारी स्त्रियों का संग, निष्पाप पशु की हत्या, मांस, मदिरापान करना इन सब पाप कृत्यों से वह अत्यंत पापी और दुराचारी बना था। अपने परिवार के लिए वो कलंक था। देवता, ब्राह्मण, बुजुर्ग तथा अतिथियों को कभी आदर नही देता, सदा पाप करने में रत था।
एक दिन मार्ग पर वेश्या के कंधेप र हाथ रखकर जाते हुए उसे उसके पिता धनपाल ने देखा और उन्हें बहुत दुःख हुआ। उसी दिन उन्होने धृष्टबुद्धी को घर से बाहर निकाला। इसलिए धृष्टबुद्धी अपने माता-पिता, भाई, रिश्तेदार और वैश्य समाज से अलग हुआ और हर एक के तिरस्कार का विषय बना। पिता के निकालने से धृष्टबुद्धी घर से बाहर जाकर ज्यादा पापकृत्यों में व्यस्त हुआ। खुद के वस्त्र और धन बेचकर जो भी मिला वो सभी उसने पापकृत्यों में लगाया। अंत में जब धन खत्म हुआ तो निर्धनता के कारण उसकी हालत भिखारी जैसी हुई। अन्न न मिलने से उसका शरीर कमजोर हो गया, उसके सभी धूर्त मित्रों ने बहाने बनाकर उसका त्याग किया।
धृष्टबुद्धी को अतिशय चिंता हो रही थी, भुख से वह व्याकुल हो रहा था। अब मुझे क्या करना चाहिए। अन्न और धन कहाँ से प्राप्त होगा ? इन प्रश्नों को सोचकर वह अशांत हो रहा था। आखिर उसने चोरी करने का निश्चय किया और शुरुआत भी की। बहुत बार राजा के सिपाही उसे पकडने के बाद भी, उसके पिता का मान और बड़प्पन देखकर छोड़ देते। फिर भी उसने चोरी करना बंद नही किया। एक बार विशेष चोरी करते समय वह पकड़ा गया। तब राजाने उसे कहा, "हे मूर्ख, आज तुम इस राज्य में नहीं रह सकते क्योंकि तुम महापापी हो। मैं तुम्हे अभी छोड़ रहा हूँ, तुरंत इस राज्य के बाहर चले जाओ। तुम्हे जहाँ जाना है तुम जा सकते हो।"
फिर से सजा मिलने के भय से धृष्टबुद्धी राज्य के बाहर गहन वन में गया। अविवेक के कारण निष्पाप प्राणियों की हत्त्या करके उनका कच्चा मांस वह खाने लगा। किसी शिकारी की भाँति हाथ में धनुष्य लेकर वह वन में पापकृत्य करते भटकने लगा। धृष्टबुद्धी हर समय दुःखी और चिंतित रहता। परंतु एक दिन उसके पिछले जन्म के पुण्यकर्म के प्रभाव से, वह एक ऋषिके आश्रम में पहुँचा। उस आश्रम में कौण्डिण्य नामक बड़े तपस्वी रहते थे। वैशाख मास था और कौण्डिण्य मुनी गंगास्नान से लौट रहे थे। दुःखों से परेशान धृष्टबुद्धी ने अनजाने में ऋषिके वस्त्र से टपकते जल को स्पर्श किया और आश्चर्यम् ! वह अपने सभी पापों से मुक्त हो गया। उसी समय उसने ऋषिको दंडवत प्रणाम करके विनम्रता से पूछा, "हे ऋषिवर ! मै बहुत पापी व्यक्ति हूँ। ऐसा कौनसा भी पाप नहीं है जो मैने नहीं किया हो। कृपया ऐसा व्रत बताईये जिसके प्रभावसे मैं सभी पापों से मुक्त हो जाऊँ। अपर्याद पापकृत्यों के कारण मैं अपने कुटुंब से, मित्रोंसे, समाज से दूर हो गया हूँ साथ ही मैं मानसिक दुःख के खाई में गिरा हूँ।"
यह सब सुनते ही परदुखदुखी होनेवाले कौण्डिण्य ऋषिने कहा, "सुनो! मेरु पर्वत से भी अधिक प्रचंड पापों की राशि को नष्ट करनेवाले व्रत के बारे में मैं तुम्हे कहता हूँ। उस व्रत के पालनसे कुछ ही क्षणोंमे तुम्हारे पापों का नाश हो जाएगा। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का पालन करते ही तुम सभी पापोंसे मुक्त हो जाओगे।"
ऋषि के आदेश से धृष्टबुद्धीने इस व्रतका कठोर पालन किया। हे राजन! इस व्रत के पालन से वह सभी पापोंसे मुक्त होकर दिव्य शरीर प्राप्त करके गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक चला गया। हे रामचंद्र ! इस व्रत से सभी पापोंसे, भ्रमसे व्यक्ति मुक्त होता है। इस व्रत से प्राप्त होनेवाला फल तीर्थ में स्नान करने से अथवा यज्ञ करनेसे प्राप्त होनेवाले से भी श्रेष्ठ है।
मोहिनी एकादशी पूजन विधि (Mohini Ekadashi pujan vidhi)
अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।
कुछ भक्त केवल अनाज और चावल से बने भोजन से परहेज करके आंशिक उपवास भी रखते हैं। इस व्रत के पालनकर्ता को पूजा अनुष्ठान समाप्त करने के बाद मोहिनी एकादशी व्रत कथा भी सुननी चाहिए।
मोहिनी एकादशी के दिन भक्त पूरी रात जागते हैं और भगवान विष्णु के नाम पर भजन और कीर्तन करते हैं।
मोहिनी एकादशी व्रत क्यों करते हैं? मोहिनी एकादशी व्रत से लाभ -
मोहिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को अनंत धन और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र से मुक्ति मिलेगी। भक्तों को उनके वर्तमान या पिछले जीवन में जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी।
मोहिनी एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? मोहिनी एकादशी को खाने के पदार्थ :-
1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।
2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।
मोहिनी एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?
एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -
1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,
2. हरी सब्जियाँ,
3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,
4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,
5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,
6. शहद पूरी तरह से वर्जित
मोहिनी एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?
मोहिनी एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।