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परम एकादशी अधिमास माह कृष्ण पक्ष - Param Ekadashi

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पद्मिनी (कमला) एकादशी अधिमास

परम एकादशी अधिमास माह कृष्ण पक्ष - Param Ekadashi

11 जून, 2026, गुरुवार को अधिमास परम एकादशी है।


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

परम एकादशी व्रत की शुरुआत

11 जून, 2026, गुरुवार को अधिमास परम एकादशी है।

परम एकादशी व्रत का पारण

परम एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 12, जून, 2026 को सुबह 5 बजकर 22 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 53 मिनट के बीच होगा।

परम एकादशी किसे कहते हैं ? परम एकादशी क्यों मनाई जाती है?

परम एकादशी अधिक मास के कृष्ण पक्ष में आनेवाली एकादशी है। इसे भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार परम एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है उस पर निर्भर करता है। अतः परम एकादशी का उपवास करने के लिए कोई चन्द्र मास तय नहीं है। अधिक मास को लीप के महीने के नाम से भी जाना जाता है। 16 अगस्त 2023 को मलमास के खत्म होने के बाद अब तीन साल बाद 2026 में फिर से मलमास लगेगा 2026 में मलमास की शुरुआत 17 मई से होगी और इसका समापन 15 जून होगा। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह एकादशी परम दुर्लभ सिद्धियों की दाता होने के कारण ही परमा के नाम से प्रसिद्ध है। यह धन की दाता और सुख-ऐश्वर्य की जननी परम पावन है एवं दुख-दरिद्रता का दमन करने वाली है। इस एकादशी में स्वर्ण दान, विद्या दान, अन्न दान, भूमि दान और गौदान करना चाहिए।

परम एकादशी कथा

एक बार युधिष्ठिर महाराजने भगवान श्रीकृष्ण को पूछा, "हे भगवान! अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम क्या है ? इस एकादशी व्रत को कैसे करना चाहिए। इस बारे में आप विस्तार से कहिए।"

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "हे राजन! इस एकादशी का नाम 'परम' है। यह एकादशी भुक्ती तथा मुक्ति देनेवाली है। अन्य एकादशी जैसेही इस एकादशी को करना चाहिए। इस दिन व्रतधारी व्यक्ति को सभी का पालन करनेवाले भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। कांपिल्य नगर के ऋषिद्वारा सुनी हुई कथा मैं आपको कहता हूँ, वह सुनिए।"

"सुमेध नामक एक पवित्र ब्राह्मण था। वो अपने पवित्रा नामक पतिव्रता पत्नी के साथ कांपिल्य नगरमें रहता था। गत जन्मों में किए गए पापकर्म के कारण वह बहुत दरिद्र था। उसे भिक्षा भी नही मिलती। इसलिए उसे खाने के लिए अन्न, वस्त्र और सोने के लिए जगह का अभाव था। परंतु उसके सुंदर पत्नी ने बहुत ही श्रद्धासे उसकी सेवा की। बहुत बार अतिथि की सेवा करते हुए वह स्वयं भूखी रहती। फिर भी उसने अपने पति को कुछ न कहा।

दिन-ब-दिन कमजोर हो रही अपने पत्नी को देखकर ब्राह्मण स्वयं को धिक्कारने लगा और अपनी पत्नी से कहा, "प्रिये ! बड़े बड़े लोगों के पास भिक्षा माँगकर भी, मुझे कुछ प्राप्त नही होता। क्या मुझे परदेस जाकर धन प्राप्त करना चाहिए ? शायद जो मेरे नसीब में होगा वह मुझे प्राप्त होगा। उत्साह के बिना कौनसा भी कार्य सिद्ध नहीं होता। इसलिए विद्वान, मनुष्य लोगों के उत्साह की प्रशंसा करते है।"

सुमेध के कथन के पश्चात उसकी पत्नी पवित्रा ने कहा, "आप जैसा बुद्धिमान यहाँ पर कोई नहीं है। इस विश्व में हर एक को जो भी प्राप्त होता है, वो उसके पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार। पूर्व जन्म में पुण्यकर्म नहीं होंगे तो कितने भी कठोर परिश्रम से भी जितना प्राप्त होना है उतना ही मिलेगा। पूर्व जन्म में अगर किसी ने ज्ञान और धन दान किया होगा तो ही इस जन्म में उसे ज्ञान अथवा धन प्राप्त होता है। हे द्विजवर ! मुझे तो लगता है कि पूर्वजन्म में आपने और मैंने कोई पूण्य ही नहीं किए है, जिससे इस जन्म में हमारी यह परिस्थिती है। हे स्वामी! मैं आपके सिवा एक पल के लिए भी नहीं रह सकती।

अगर मैं यहाँ रहूँ, तो सभी लोग मेरा धिक्कार करेंगे। इसीलिए इधर आपको जो कुछ भी प्राप्त होता है उसमें ही हम सुख से गुजारा कर लेंगे। इस नगर में ही निश्चित ही आपको सुख की प्राप्ति होगी।"

पत्नी का कथन सुनकर ब्राह्मण ने परदेश जाने का विचार त्याग कर दिया। दैवयोग से एक दिन कौडिण्य ऋषि वहाँ पर आए। उन्हें देखकर सुमेध और उनकी पत्नी ने आनंदित होकर प्रणाम किया। उन्हें आसन देकर योग्य प्रकार से उनकी पूजा की। सुमेध ने कहा, "ऋषिवर ! आपके दर्शन से हमारा जीवन धन्य हो गया।" अपनी क्षमता के अनुसार उन्होंने ऋषि को भोजन दिया। उसके पश्चात पवित्रा ने उनको पूछा, "मुनिवर! दरिद्रता कैसे दूर होगी? धन प्राप्ति के लिए मेरे पति परदेस जा रहे थे, मैंने उन्हे जाने के लिए मना किया है। निश्चित ही यह हमारा सौभाग्य है कि आज आप यहाँ आए है। कृपया ऐसा कोई उपाय बताइये कि जिससे हमारी दरिद्रता दूर हो जाए।"

पवित्रा की बात सुनकर कौंडिण्य ऋषिने कहा, "बहुत ही मंगल करनेवाली यह एकादशी अधिक मास के कृष्ण पक्ष में आती है और उसका नाम परम है। इसका सबसे पहले पालन कुबेर ने किया था जिससे भगवान शिवजी उनपर प्रसन्न हुए थे और उन्होंने उसे ऐश्वर्य प्राप्त करने का वर प्रदान किया। राजा हरिश्चंद्र ने भी इसी व्रत का पालन करके अपनी पत्नी, संतान और राज्य को पुनः प्राप्त किया। इसीलिए हे सुंदरी तुम भी इस व्रतका पालन करो।"

भगवान् श्रीकृष्णने कहा, "हे पांडु पुत्र ! परम एकादशी के विषय के पश्चात कौण्डिण्य मुनि ने पंचरात्री व्रत के बारे में कहा। पंचरात्री व्रत का पालन करने से मुक्ति प्राप्त होती है। परम एकादशी के दिन से ही पंचरात्री व्रत का पालन करने के लिए शुरुवात करनी चाहिए। जो भी पाँच दिन इस व्रत का पालन करता है वह अपने माता-पिता के साथ वैकुंठ लोक को प्राप्त करता है।" कौण्डिण्य ऋषिके कहे अनुसार पति-पत्नीने इस व्रत का पालन किया।

पंचरात्री व्रत के पालन से ब्रह्मदेव की प्रेरणा से राजकुमार उनके घर आया और उन्हे
सभी सुविधाओं से युक्त घर दिया। साथ ही गाय भी ब्राह्मण को दान में दी। इस कृत्य से राजकुमार को भी मृत्यु के पश्चात वैकुंठ प्राप्त हुआ। जिस प्रकार मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है, चतुष्पाद प्राणियों में गाय, देवताओं में इंद्र उसी प्रकार सभी मास में अधिक मास श्रेष्ठ है। इस महीने की पद्मिनी और परम ये दोनों एकादशी भगवान् हरि को बेहद ही प्रिय है।

मानव देह प्राप्त करके भी कोई भी एकादशी व्रत का पालन नहीं करता तो उसे 84 लाख योनी में सुख प्राप्त नहीं होता। केवल उसे दुख हीं प्राप्त होता है। पूर्व जन्म के पुण्य से ही मनुष्य देह की प्राप्ति होती है। इसीलिए हर एक को अवश्य ही एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए। यह सुनकर पांडवोंने अपनी पत्नी सहित इस पवित्र एकादशी के व्रत का पालन किया।

परम एकादशी पूजन विधि (Param Ekadashi pujan vidhi)

इस एकादशी व्रत की विधि कठिन है। इस व्रत में पांच दिनों तक पंचरात्रि व्रत किया जाता है। जिसमें एकादशी से अमावस्या तक जल का त्याग किया जाता है। केवल भगवत चरणामृत लिया जाता है। इस पंचरात्र का भारी पुण्य और फल होता है। परमा एकादशी व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:

1.  इस दिन प्रात:काल स्नान के उपरांत भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल व फल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान का पूजन करना चाहिए।
2.  इसके बाद 5 दिनों तक श्री विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का पालन करना चाहिए।
3.  पांचवें दिन ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा सहित विदा करने के बाद व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए।

परम एकादशी व्रत क्यों करते हैं? परम एकादशी व्रत से लाभ -

यह एकादशी भुक्ती तथा मुक्ति देनेवाली है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। यह एकादशी परम दुर्लभ सिद्धियों की दाता होने के कारण ही परमा के नाम से प्रसिद्ध है। यह धन की दाता और सुख-ऐश्वर्य की जननी परम पावन है एवं दुख-दरिद्रता का दमन करने वाली है।

परम एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? परम एकादशी को खाने के पदार्थ :-

1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।

2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, से बनाई वस्तुएँ ।

परम एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?

एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -

1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,

2. हरी सब्जियाँ,

3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,

4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,

5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,

6. शहद पूरी तरह से वर्जित

परम एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?

परम एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।

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