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मत्स्य द्वादशी व्रत अखण्ड द्वादशी व्रत व्यञ्जनद्वादशी व्रत मार्गशीर्ष माह अगहन शुक्ल पक्ष - Mokshada Ekadashi

मत्स्य द्वादशी व्रत अखण्ड द्वादशी व्रत व्यञ्जनद्वादशी व्रत 12 दिसंबर 2024 को है।

विष्णु का ध्यान - पंचदेव पूजन विधि * विष्णुस्मरण * श्री विष्णु सहस्र नाम स्तोत्रम् * कृष्ण जन्माष्टमी * श्री राधाष्टमी * श्री राधाष्टकम * मधुराष्टकम् * युगलाष्टकम् * गोपाल सहस्त्रनाम पाठ * एकादशी * सम्पूर्ण एकादशी व्रत सूची * भगवान विष्णु के 108 नाम * ओम जय जगदीश हरे आरती * तुलसी विवाह व्रत * भीष्मपञ्चक व्रत * क्या एकादशी को तुलसी में जल देना चाहिए? * विष्णु के पूजन में चढ़ने वाले और न चढ़ने वाले पत्र-पुष्प * श्री विष्णु शत नामावलि (विष्णु पुराण) * विष्णुरूपा गायत्री का ध्यान * अनंत चतुर्दशी * दशावतार व्रत * सप्तश्लोकी गीता हिंदी अर्थ सहित * महाद्वादशी व्रत * हरि वासर और दूजी एकादशी क्या होता है? * विष्णु पुराण * पद्म पुराण * पापमोचिनी एकादशी * कामदा एकादशी * वरुथिनी एकादशी * मोहिनी एकादशी * अपरा एकादशी * निर्जला एकादशी * योगिनी एकादशी * देवशयनी एकादशी * कामिका एकादशी * पुत्रदा पवित्रा एकादशी * अजा अन्नदा एकादशी * इंदिरा एकादशी * पापांकुशा एकादशी * रमा एकादशी * देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी * उत्पन्ना एकादशी * मोक्षदा एकादशी * सफला एकादशी * पुत्रदा एकादशी * षटतिला एकादशी * जया एकादशी * विजया एकादशी * आमलकी एकादशी * परम एकादशी * पद्मिनी कमला एकादशी * त्रिस्पृशा एकादशी * मत्स्य द्वादशी व्रत - व्यञ्जनद्वादशी व्रत
 
मत्स्य द्वादशी व्रत अखण्ड द्वादशी व्रत व्यञ्जनद्वादशी व्रत

द्वादशादित्य व्रत मत्स्य द्वादशी व्रत अखण्ड द्वादशी व्रत व्यञ्जनद्वादशी व्रत मार्गशीर्ष माह अगहन शुक्ल पक्ष - Mokshada Ekadashi


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

द्वादशादित्य व्रत -

विष्णुधर्मोत्तर नामक ग्रन्थ के अनुसार द्वादशादित्य व्रत पूरे एक वर्ष चलने वाला जिसमें के बारहों रूप की पूजा की जाती है। यह व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी से आरम्भ करके प्रत्येक शुक्ल द्वादशी को 1 मार्गशीर्ष में धाता, 2 पौष में मित्र, 3 माघ में अर्यमा, 4 फाल्गुन में पूषा, 5 चैत्र में शक्र, 6 वैशाख में अंशुमान्, 7 ज्येष्ठ में वरुण, 8 आषाढ़ में भग, 9 श्रावण में त्वष्टा, 10 भाद्रपद में विवस्वान्, 11 आश्विन में सविता और 12 कार्तिक में विष्णु - इन नामों से सूर्यभगवान्‌ का यथाविधि पूजन करे और जितेन्द्रिय होकर व्रत करे तो सब प्रकार की आपत्तियों का नाश और सब प्रकारके सुखों की वृद्धि होती है।

मत्स्य द्वादशी व्रत -

मत्स्य द्वादशी व्रत भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार के रूप में दस अवतारों में से पहले अवतार मत्स्य के रूप में अवतरित होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। मत्स्य द्वादशी पर ही श्री हरि विष्णु मत्स्य रूप में अवतरित हुए थे। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर सृष्टि के अंत में प्रलय से पृथ्वी और उसके जीवों की रक्षा की थी।

मत्स्य द्वादशी पर जो भी भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही उसके जीवन के हर कार्य बन जाते हैं। मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की द्वादशी को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में दैत्य हयग्रीव का संहार कर वेदों की रक्षा की थी।

मत्स्य द्वादशी पर पर नदियों और जलाशयों पर मछलियों आटे की गोली खिलाने से भी बहुत पुण्य प्राप्त होता है। मान्यताओं के अनुसार, जो भी ऐसा करता है उसकी कुंडली के तमाम दोष कट जाते हैं।

मत्स्य द्वादशी पूजा विधि -

1. मत्स्य द्वादशी पर सुबह सूर्योदय पर भगवान सूर्य को जल देना चाहिए।
2. भगवान सूर्य को जल देने के बाद व्रत और पूजा का संकल्प करना चाहिए।
3. इसके बाद एक चौकी पर पीला आसन बनाकर भगवान विष्णु को उस पर विराजमान करना चाहिए।
4. भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी को रखना न भूलें।
5. इसके बाद भगवान को पीले पूल चढ़ाएं और उनके सामने घी का दिया जलाएं।
6. भगवान को धूप- अगरबत्ति से सुगंधित करें।
7. फिर तुलसी के पत्ते अर्पित कर भगवान को मीठे का भोग लगाएं।
8. पूजा के बाद प्रसाद बाटें और जरुरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें।

मत्स्य अवतार की कथा -

भगवान विष्णु के 12 अवतारों में मत्स्य अवतार पहला माना जाता है। कथाओं के अनुसार, एक बार परमपिता बह्मा जी के असावधानी बरतने के चलते दैत्य हयग्रीव वेदों की चोरी कर ली थी। इस कारण संसार से ज्ञान गायब हो गया। वेदों के चोरी हो जाने से सारे संसार को अज्ञानता ने अपनी चपेट में ले लिया। तब श्री हरि विष्णु ने मत्स्य अवतार ने लेकर हयग्रीव का संहार किया था और धर्म की रक्षा की थी। भगवान विष्णु ने दैत्य हयग्रीव मारकर वेदों को बह्मा जी को दे दिया था।

 

व्यञ्जनद्वादशी व्रत -

व्रतोत्सव नामक ग्रन्थ के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को भगवान्‌ विष्णु का षोडशोपचार पूजन करके अन्नकूट के समान अनेक प्रकार के भोजन-पदार्थ बनाकर भगवान्‌ को अर्पण करे और प्रसाद के अभिलाषी भगवद्भक्तों को आदर और प्रेमके साथ प्रसाद दे। बाद में एक बार भोजन करे।

जनार्दन पूजा -

मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को जनार्दनपूजा का विशेष विधान है। इस दिन प्रातःस्त्रान से पवित्र होकर उपवास करके देवदेवेश भगवान्‌ का पूजन करे। भगवान् को पञ्चगव्य से स्नान कराये। उसी का स्वयं पान करे और जौ तथा चावलों का पात्र ब्राह्मण को दे। साथ ही निम्न मंत्र से प्रार्थना करें -

सप्तजन्मसु यत् किंचिन्मया खण्डव्रतं कृतम् ।
भगवंस्त्वत्प्रसादेन तदखण्डमिहास्तु मे ।।
यथाखिलं जगत् सर्वं त्वमेव पुरुषोत्तम ।
तथाखिलान्यखण्डानि हतानि मम सन्तु वै ।।

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