× SanatanShakti.in About Us Home Founder Religion Education Health Contact Us Privacy Policy
indianStates.in

वरुथिनी एकादशी वैशाख माह कृष्ण पक्ष - Varuthini Ekadashi

विष्णु का ध्यान - पंचदेव पूजन विधि * विष्णुस्मरण * श्री विष्णु सहस्र नाम स्तोत्रम् * कृष्ण जन्माष्टमी * श्री राधाष्टमी * श्री राधाष्टकम * मधुराष्टकम् * युगलाष्टकम् * गोपाल सहस्त्रनाम पाठ * एकादशी * सम्पूर्ण एकादशी व्रत सूची * भगवान विष्णु के 108 नाम * ओम जय जगदीश हरे आरती * तुलसी विवाह व्रत * भीष्मपञ्चक व्रत * क्या एकादशी को तुलसी में जल देना चाहिए? * विष्णु के पूजन में चढ़ने वाले और न चढ़ने वाले पत्र-पुष्प * श्री विष्णु शत नामावलि (विष्णु पुराण) * विष्णुरूपा गायत्री का ध्यान * अनंत चतुर्दशी * दशावतार व्रत * सप्तश्लोकी गीता हिंदी अर्थ सहित * महाद्वादशी व्रत * हरि वासर और दूजी एकादशी क्या होता है? * विष्णु पुराण * पद्म पुराण * पापमोचिनी एकादशी * कामदा एकादशी * वरुथिनी एकादशी * मोहिनी एकादशी * अपरा एकादशी * निर्जला एकादशी * योगिनी एकादशी * देवशयनी एकादशी * कामिका एकादशी * पुत्रदा पवित्रा एकादशी * अजा अन्नदा एकादशी * इंदिरा एकादशी * पापांकुशा एकादशी * रमा एकादशी * देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी * उत्पन्ना एकादशी * मोक्षदा एकादशी * सफला एकादशी * पुत्रदा एकादशी * षटतिला एकादशी * जया एकादशी * विजया एकादशी * आमलकी एकादशी * परम एकादशी * पद्मिनी कमला एकादशी * त्रिस्पृशा एकादशी * मत्स्य द्वादशी व्रत - व्यञ्जनद्वादशी व्रत
 
वरुथिनी एकादशी वैशाख माह कृष्ण

वरुथिनी एकादशी वैशाख माह कृष्ण पक्ष - Varuthini Ekadashi

4 मई , 2024, शनिवार को वैशाख वरुथिनी एकादशी है।


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

वरुथिनी एकादशी व्रत की शुरुआत

4 मई , 2024, शनिवार को वैशाख वरुथिनी एकादशी है। एकादशी 3 मई, को रात्रि 11 बजकर 24 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन, 4 मई को रात्रि 8 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगा। उदया तिथि से 4 मई, 2024, शुक्रवार को वैशाख वरुथिनी एकादशी है।

वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण

वरुथिनी एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 5 मई 2024 को सुबह 5 बजकर 37 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 17 मिनट के बीच होगा।

वरुथिनी एकादशी किसे कहते हैं ? वरुथिनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में आनेवाली वरुथिनी एकादशी का महात्म्य भविष्योत्तर पुराण में श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवाद में कहा गया है।

एक बार युधिष्ठिर महाराज ने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा, "हे वासुदेव ! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम क्या है ? और इस एकादशी व्रत का पालन करने से क्या फल प्राप्त होता है और उसका महात्म्य क्या है ?"

भगवान् श्रीकृष्णने कहा, "हे प्रिय राजन् ! इस एकादशी का नाम वरुथिनी है जिसको करने से इस जन्म और अगले जन्म में भी सौभाग्य प्राप्त होता है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होता है, साथ ही उसे वास्तविक आनंद की प्राप्ति होकर वह भाग्यवान बनता है। और जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा मिलकर उसे भगवान की भक्ति प्राप्त होती है। इस व्रत के पालन से मान्धाता राजा
को मुक्ति मिली। उसी प्रकार अनेक राजा महाराजा जैसे की महाराज धुन्धुमार भी मुक्त हुए। केवल वरुथिनी एकादशी के व्रत से दस हजार वर्ष तपस्या का फल प्राप्त होता है। तथा सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र पर 40 किलो सुवर्णदान का फल इस व्रत को करनेसे मिलता है।"

"हे राजन् ! गजदान ये अश्वदान से श्रेष्ठ है, भूमिदान ये गजदान से श्रेष्ठ माना जाता है और तिलदान ये भूमिदान से भी श्रेष्ठ है। सुवर्णदान ये तिलदान से श्रेष्ठ है तथा अन्नदान ये सुवर्णदान से भी श्रेष्ठ है। हे राजन् ! अन्नदान करने से पूर्वज, देवता और सभी प्राणी प्रसन्न होते है। बुद्धिमान लोंगो का यह विचार है कि, कन्यादान भी अन्नदान इतना ही पुण्यकार्य है। स्वयं भगवान् कहते है कि अन्नदान ये गोदान इतना ही श्रेष्ठ है। परंतु सर्वश्रेष्ठ विद्यादान ही है।"

केवल वरुथिनी एकादशी व्रत के पालन से सभी प्रकार के दान देने जैसा पुण्य प्राप्त होता है। अपने चरितार्थ के लिए जो अपनी कन्या को बेचता है वो सबसे नीच मनुष्य माना जाता है और प्रलय तक उस व्यक्ति को नरक में दुःख भोगना पड़ता है। इसलिए किसी को भी अपनी कन्या के बदले में कभी धन स्वीकार नहीं करना चाहिए। और जो व्यक्ति ऐसा करता है उसे अगला जन्म बिल्ली का मिलता है। परंतु अपनी क्षमता से जो व्यक्ती सुवर्णालंकार से सुशोभित करके योग्य वर को अपनी कन्या प्रदान करता है उस व्यक्ति के पुण्यों का लेखाजोखा यमराज के सचिव चित्रगुप्त भी नहीं कर सकते।

इस एकादशी के व्रत का पालन करनेवालों को कुछ बाते वर्जित है वह है :- कांसे के बर्तन में न खाऐं। मांसाहार न करें। मसूर की दाल, हरी सब्जियाँ, मटर ना खायें। अभक्त के हाथ का बनाया हुआ न खायें। दशमी, एकादशी दिन मैथुन वर्जित है। जुआ ना खेलें। पान न खायें। दांत की सफाई न करे । (दंतमजन करना वर्जित है) प्रजल्प न करे । झूठ ना बोलें। किसी की भी निंदा न करे। पापी व्यक्ति से बात न करे। दिन में न सोये। किसी पर भी क्रोध ना करे। शहद न खायें। दशमी, एकादशी और द्वादशी के दिन नाखून, बाल ना काटें । दाढ़ी भी न करे। दशमी, एकादशी और द्वादशी के दिन शरीर को तेल न लगाऐं। सावधानीपूर्वक इन सब बातों का पालन करने से उत्तम प्रकार से एकादशी व्रत का पालन होता है और पालन करनेवाले को जीवन के सर्वोच्च ध्येय की प्राप्ति होती है। एकादशी के दिन जागरण करने से सभी पाप क्षय हो जाते है और उसे भगवत की प्राप्ति होती है। इस एकादशी की महिमा को जो कोई भी सुनता है अथवा पढ़ता है उसे एक सहस्र गोदान का पुण्य मिलता है और वह भगवान् विष्णुके धामकी प्राप्ति करता है।"

वरुथिनी एकादशी कथा

प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।

राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए। उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे।

जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।

वरुथिनी एकादशी पूजन विधि (Varuthini Ekadashi pujan vidhi)

अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।

कुछ भक्त केवल अनाज और चावल से बने भोजन से परहेज करके आंशिक उपवास भी रखते हैं। इस व्रत के पालनकर्ता को पूजा अनुष्ठान समाप्त करने के बाद वरुथिनी एकादशी व्रत कथा भी सुननी चाहिए।

वरुथिनी एकादशी के दिन भक्त पूरी रात जागते हैं और भगवान विष्णु के नाम पर भजन और कीर्तन करते हैं।

वरुथिनी एकादशी व्रत क्यों करते हैं? वरुथिनी एकादशी व्रत से लाभ -

वरुथिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को अनंत धन और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र से मुक्ति मिलेगी। भक्तों को उनके वर्तमान या पिछले जीवन में जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी।

वरुथिनी एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? वरुथिनी एकादशी को खाने के पदार्थ :-

1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।

2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।

वरुथिनी एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?

एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -

1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,

2. हरी सब्जियाँ,

3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,

4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,

5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,

6. शहद पूरी तरह से वर्जित

वरुथिनी एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?

वरुथिनी एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।

***********

www.indianstates.in

वरुथिनी एकादशी वैशाख माह कृष्ण पक्ष - Varuthini Ekadashi