निर्जला एकादशी - भीमसेनी एकादशी ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष - Nirjala Ekadashi Bhimaseni Ekadashi
निर्जला एकादशी ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष - Nirjala Ekadashi
17 जून 2024, मंगलवार को ज्येष्ठ निर्जला एकादशी - भीमसेनी एकादशी है।
आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)
नोट - व्रती मुहूर्त का दिए गए समय में अपने स्थान के अनुसार समय का समायोजन कर लें। जैसे काशी से पटना में 8 मिनट का अंतर है। पटना में सूर्योदय काशी से आठ मिनट पहले हीं हो जायेगा। सासाराम में 4 मिनट पहले हो जायेगा। किसी किसी स्थान पर काशी से पीछे सूर्योदय होगा। अत: व्रती पूरी जानकारी न हो तो मुहूर्त का बीच का समय लें ताकि सब कुछ मुहूर्त में हीं हो।
निर्जला एकादशी - भीमसेनी एकादशी व्रत की शुरुआत
निर्जला एकादशी को हीं भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। पांडवों में भीम ने इस व्रत को रखकर अपनी कठिन तपस्या पूर्ण की थी, इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है
17 जून 2024, सोमवार को ज्येष्ठ निर्जला एकादशी है। काशी पंचांग से 16 जून 2024, को रात्रि 02 बजकर 54 मिनट पर दशमी तिथि समाप्त हो रहा है और एकादशी तिथि प्रारंभ होगा और अगले दिन, समाप्त - 18 जून 2024, को सुबह 04 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगा। एकादशी तिथि में सूर्योदय 17 जून 2024, सोमवार को हो रहा है अत: उदया तिथि से ज्येष्ठ निर्जला एकादशी 17 जून 2024 को है।
निर्जला एकादशी व्रत का पारण
काशी पंचांग से निर्जला एकादशी व्रत का पारण अगले दिन 18 जून 2024 को सुबह 5 बजकर 13 मिनट के बाद होगा।
निर्जला एकादशी किसे कहते हैं ? निर्जला एकादशी क्यों मनाई जाती है?
निर्जल एकादशी का वर्णन ब्रह्मवैर्वत पुराण में श्रील व्यासदेव और भीमसेन के संवाद में मिलता है। निर्जला एकादशी व्रत में जल का त्याग करना होता है। इस व्रत में व्रती पानी का सेवन नहीं कर सकता है। व्रत का पारण करने के बाद ही व्रती जल का सेवन कर सकता है। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
निर्जला एकादशी कथा
एक बार पांडुपुत्र भीमसेन ने अपने पितामह श्रील व्यासदेव को पूछा, "हे पितामह ! माता कुंती, द्रौपदी, तात युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी एकादशी का व्रत करते है। भ्राता युधिष्ठिर भी मुझे यह व्रत करनेको कहते है और मुझे भी यह ज्ञात है कि एकादशी को उपवास करना यह वेदों का आदेश है, पर मुझे भूख सहन नही होती। मैं सभी नियमानुसार केशवकी उपासना, पूजा करना, मेरे क्षमता अनुसार दानधर्म करना ये सभी करूँगा पर उपवास नहीं कर सकता। कृपा करके उपवास के बिना एकादशी व्रत कैसे करना चाहिए इस विषय में आप बताएँ।"
यह सब सुनकर भीमसेन को श्री वेदव्यासजी ने कहा, "हे भीम ! अगर नरक के स्थान पर स्वर्ग जाता है तो मास के दोनों एकादशी का पालन तुम्हें करना चाहिए। अर्थात दोंनो एकादशी को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए
।
भीमसेन ने कहा, "वर्ष में आनेवाली २४ एकादशी को उपवास करना मेरे लिए असंभव है। रातदिन की बात क्या मै तो क्षणभर भी भूखा नही रह सकता। 'भुख' नाम का उदराग्नी मेरे उदर में नित्य प्रज्वलित रहती है। उसे शांत करने के लिए मुझे बहुत खाना पड़ता है। बहुत हुआ तो वर्ष में एक दिन मैं उपवास कर सकता हूँ। इसलिए आप मुझे योग्य ऐसे एक व्रत के बारें में बताइये जिससे मेरा जीवन मंगलमय बन जाएँ।"
श्रील व्यासदेवजी ने कहा, "हे राजन् ! अभी मैंने तुम्हें सभी वैदिक विधियाँ बताई है। परंतु कलियुग में कोई भी उसका पालन नही करेगा। इसिलिए बहुत ही उंचा और सर्वहितकारक श्रेष्ठ व्रत मैं तुम्हे बताता हूँ। ये व्रत सभी शास्त्रों का, पुराणों का सार है जो कोई भी शुक्ल और कृष्ण पक्ष में आनेवाली एकादशीका पालन करता है उसे नरक नहीं जाना पड़ता।"
व्यासदेवजी के कथन पर बलशाली भीमसेन भय से काँपते हुए पूछा, "हे पितामह! अब मैं क्या करूँ ? मास के दो दिन का उपवास करने में पूर्ण असमर्थ हूँ। कृपया आप मुझे ऐसा व्रत कहें जिसके पालन से मुझे सभी व्रतोंका फल प्राप्त हो।"
उसके पश्चात श्रीवेदव्यासजी ने कहा, "ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जब सूर्य वृष अथवा मिथुन राशि में आता है, उस समय के एकादशी को निर्जल कहते है। इस दिन जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन आचमन करते हुए एक राई डुबे इतनाही जल लेकर आचमन करना चाहिए। इससे ज्यादा जल पीने से मद्यपान करने का परिणाम प्राप्त होता है। इस एकादशी में कुछ भी खाना वर्जित है, खानेसे व्रत भंग हो जाता है। एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक पानी भी वर्जित है। इस प्रकार व्रत का पालन करने से वर्षकी सभी एकादशीका फल इस एक व्रत से होता है। द्वादशी की सुबह ब्राह्मणों को जल और सुवर्ण दान करके व्रत करनेवाले को आनंद से ब्राह्मण के साथ ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।"
"हे भीमसेन ! इस एकादशी व्रत से प्राप्त होनेवाले पुण्य के बारे में सुनिए । केवल इस एकादशी के पालन से ही वर्ष की सभी एकादशी व्रत पालन करने का पुण्य प्राप्त होता है। शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करनेवाले भगवान् विष्णु ने मुझे बताया था, जो कोई भी अन्य धर्मों का त्याग करके मेरी शरण आता है और निर्जल एकादशी का पालन करता है वह मुझे बहुत प्रिय है और वह निश्चय ही सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्मार्त विधि नियमों का पालन करने से कोई भी कलियुग में उच्च ध्येय नही प्राप्त कर सकता क्योंकि कलियुग के अनेक दोषों से वे सभी विधिनियम भी प्रदूषित होंगे।"
"हे वायुपुत्र ! किसी भी एकादशी में अन्न खाना त्याज्य है साथ ही निर्जल एकादशी में पानी पीना भी वर्जित है। इस व्रत के पालन से सभी तीर्थस्नान के यात्रा का फल मिलता है और मृत्यु के समय भयानक यमदूतों के स्थान पर सुंदर विष्णुदूत उस व्यक्ति को वैकुंठ ले जायेंगे। इस एकादशी का पालन करके जो कोई भी गोदान करता है वह अपने सभी पापकर्मों से मुक्त होता है।"
जब अन्य पांडुपुत्रों ने इस एकादशी के बारे में सुना तो इस व्रत का पालन करने का निश्चय किया। उसी समयसे भीमसेन ने भी इस व्रत का पालन करना आरंभ किया। इसीलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी अथवा पांडव एकादशी भी कहते है। भगवान् श्रीकृष्णने घोषणा की है, "जो कोई भी इस एकादशी दिन पुण्यकर्म करता है, तीर्थस्थान में स्नान करता है, वैदिक मंत्रों का पठन करता है और यज्ञ करता है वह सब अक्षय हो जाता है।"
इस व्रत की महिमा जो कोई भी श्रवण करेगा उसे अमावस के साथ आनेवाली प्रतिपदा के दिन पितरों को दिया हुआ तर्पण का फल प्राप्त होता है। साथ ही उस व्यक्ति को वैकुंठ प्राप्त होता है।
निर्जला एकादशी पूजन विधि (Nirjala Ekadashi pujan vidhi)
अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।
इस एकादशी में कुछ भी खाना वर्जित है, खानेसे व्रत भंग हो जाता है। एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक पानी भी वर्जित है। इस प्रकार व्रत का पालन करने से वर्षकी सभी एकादशीका फल इस एक व्रत से होता है।
निर्जला एकादशी व्रत क्यों करते हैं? निर्जला एकादशी व्रत से लाभ -
निर्जला एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को अनंत धन और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र से मुक्ति मिलेगी। भक्तों को उनके वर्तमान या पिछले जीवन में जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी।
निर्जला एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? निर्जला एकादशी को खाने के पदार्थ :-
1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।
2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।
निर्जला एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?
एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -
1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,
2. हरी सब्जियाँ,
3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,
4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,
5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,
6. शहद पूरी तरह से वर्जित
निर्जला एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?
निर्जला एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।