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पापमोचिनी एकादशी चैत्र माह कृष्ण पक्ष - Papamochani Ekadashi

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पापमोचिनी एकादशी चैत्र माह कृष्ण

पापमोचिनी एकादशी चैत्र माह कृष्ण पक्ष - Papamochani Ekadashi

5 अप्रैल, 2024, शुक्रवार को चैत्र पापमोचिनी एकादशी है।


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

पापमोचिनी एकादशी व्रत की शुरुआत

5 अप्रैल, 2024, शुक्रवार को चैत्र पापमोचिनी एकादशी है। एकादशी 4 अप्रैल, को शाम 4 बजकर 14 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन, 5 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगा। उदया तिथि से 5 अप्रैल, 2024, शुक्रवार को चैत्र पापमोचिनी एकादशी है।

पापमोचिनी एकादशी व्रत का पारण

पापमोचिनी एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 21 मार्च 2024 को दोपहर 1 बजकर 13 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 38 मिनट के बीच होगा।

पापमोचिनी एकादशी किसे कहते हैं ? पापमोचिनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?

भविष्योत्तर पुराण में भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवादों में पापमोचनी एकादशी का वर्णन आता है ।

एक बार युधिष्ठिर महाराज भगवान् श्रीकृष्ण को कहने लगे, "हे केशव! आमलकी एकादशी के वर्णन के पश्चात चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आनेवाली पापमोचनी एकादशी का कृपया कथन करें।"

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "हे राजन! बहुत वर्ष पहले लोमश ऋषिने राजा मान्धाता को इस पापमोचनी एकादशी की महिमा सुनायी थी। इस एकादशी व्रत के पालन से मनुष्य सब पापोंसे मुक्त होता है और जीवन के अनेक प्रकारके बुरे अनुभव से मुक्त होकर अष्टसिद्धी प्राप्त करता है।"

पापमोचिनी एकादशी कथा

लोमश ऋषीने कहा, "बहुत पहले देवाताओं का कोषाध्यक्ष कुबेर का अतिशय सुंदर चैतरथ नाम एक मनोहर उपवन था। विशेष करके पूरे वर्षभर वसंत ऋतु के जैसा उस उपवन का वातावरण था। इसीलिए स्वर्गकन्या, किन्नर, अप्सरा और गंधर्व हमेशा विहार के लिए वहाँ आते थे। विशेष करके देवेंद्र और अन्य देवता भी वहाँ आकर आनंद और प्रेम का आदान-प्रदान करते थे। उसी उपवन में शिवजी के परमभक्त मेधावी नामक ऋषि तपस्या करते थे जिनकी तपस्या अनेक प्रकार से भंग करने का प्रयत्न स्वर्ग की अप्सराएँ करती थी।

मंजुघोषा अप्सरा ने उनका तपोभंग करने का निश्चय किया। उसने ऋषि के आश्रम के समीप ही कुटिया बांधी और बहुत ही मधुर स्वर में गाना गाने लगी। उसी समय शिवजी का शत्रु कामदेव भी शिवभक्त मेधावी ऋषि को जीतने का प्रयत्न करने लगे । शिवजी ने कामदेव को एकबार भस्म किया था उसी का प्रतिशोध लेने के लिए कामदेवने ऋषि के शरीरमें प्रवेश किया। शुभ्र उपवीत धारण किए हुए मेधावी ऋषि च्यवन महर्षी के आश्रम में वास करते थे। कामदेव के शरीर में प्रवेश से मेधावी ऋषि भी कामदेव जैसे ही सुंदर दिखने लगे। उसी वक्त कामासक्त मंजुघोष उनके सामने आई। मेधावी ऋषि भी काम से घायल हो गए। उन्हे शिवजी की उपासना का विस्मरण हुआ और स्त्री संग मे पूरी तरह मग्न रहे। स्त्री-संग में उन्हे दिन-रात का भी विस्मरण हो गया। इस प्रकार अनेक वर्ष मेधावी ऋषीने काम क्रीडा में बिताए।

उसके पश्चात मंजुघोष ने जाना कि मेधावी ऋषि का पतन हो चुका है और उसे अब स्वर्ग लौटना चाहिए । प्रणय में मग्न ऋषी को वह कहने लगी, "हे ऋषीवर ! कृपया मुझे स्वर्गलोक में लौटने की अनुमति दीजिए।" उसपर मेधावी ऋषीने उत्तर दिया, "हे सुंदरी ! आज संध्या को तुम मेरे पास आयी हो, आज रात यहाँ पर रहकर सुबह तुम लौट जाना।" मंजुघोषा इस तरह और कुछ वर्ष वहाँ रही जो 57 वर्ष 9 महिने 3 दिन का काल था, परंतु ऋषि के लिए यह काल केवल अर्धरात्रि समान था। पुनः स्वर्ग जाने की अनुमति लेनेपर ऋषि ने कहा, "हे सुंदरी ! अब प्रातः हो रही है, मेरी प्रातः विधी के पश्चात तुम जाना ।" तभी अप्सरा हसते हुए कहने लगी, "हे ऋषिवर ! प्रातः विधी को आपको कितना समय लगेगा ? अभी तक आपको तृप्ति नही आई ? मेरे संग में आपने कितने वर्ष गुजारे है? इसलिए कृपया समय का ध्यान करें।"

ये शब्द सुनते ही मेधावी ऋषी ने वर्षों की गणना की और कहा, "अरेरे! हे सुंदरी ! मैने अपने जीवनके 57 वर्ष व्यर्थ गवां दिए । तुमने मेरे जीवन और तपस्या इन दोनों का नाश किया।" ऋषीके आँखों में आंसू आए और उन्होंने मंजुघोष को शाप दिया, "हे दुष्टे ! तुम्हे धिक्कार है ! तुमने मेरे साथ चुड़ैल जैसा व्यवहार किया है, इसलिए तुम चुड़ैल बनो।"

ऋषी से शाप मिलने के बाद मंजुघोषा ने कहा, "हे द्विजवर ! कृपया ये कठोर शाप आप वापस लीजीए । आप बहुत समय हमारे साथ रहे । हे स्वामी ! कृपया दया कीजिए ।"

इसपर मेधावी ऋषी कहने लगे, "हे देवी ! मै अब क्या करूँ ? तुमने मेरी तपोशक्ति तथा तपोधन का नाश किया है। फिर भी इस शाप से मुक्त होने का उपाय सुनो । चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में जो पापमोचनी एकादशी आती है उस दिन इस एकादशी व्रतका कठोर पालन करनेसे इस पिशाच्च योनीसे तुम्हे मुक्ति मिलेगी।"

इतना कहकर मेधावी ऋषी अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम लौट आए। अपने पतित पुत्र को देखकर च्यवन ऋषीकों बहुत दुःख हुआ। वे कहने लगे, "हे पुत्र ! तुमने ये क्या किया ? एक स्त्री के लिए अपनी तपस्या नष्ट की। अपना ही नाश कर लिया?" उसपर मेधावी ऋषीने कहा, "मैंने दुर्भाग्यसे एक अप्सरा का संग करके बहुत बड़ा पातक किया। कृपा करके इस पाप का योग्य प्रायश्चित बताएँ ।" पश्चातापदग्ध पुत्र के शब्द सुनने के बाद च्यवन महर्षी ने कहा, "चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी के व्रत पालन से तुम पापामुक्त हो जाओगे।"

"उत्साह और कठोरता से मेधावी ऋषी ने उस व्रत का पालन किया जिसके प्रभावसे वे सभी पापों से मुक्त हुए । मंजुघोष को भी इस व्रत के पालन करने से अपने पूर्वरूप की प्राप्ति हो गई जिससे वह स्वर्गलोक चली गई।"

यह कथा कहने के पश्चात लोमश ऋषी ने मान्धाता राजाको कहा, "हे प्रिय राजन ! केवल इस व्रत पालन से सभी पाप नष्ट हो जाते है। इस एकादशी के महात्म्य पढनेसे अथवा सुनने से हजार गाय दान करने का पुण्य प्राप्त होता है। इस एकादशी व्रत का पालन करने से अनेक पापों से जैसे कि भ्रूणहत्या, ब्रह्महत्या, मद्यपान, परस्त्रीसंग,
गुरुपत्नीसंग इनका नाश हो जाता है।"

पापमोचिनी एकादशी पूजन विधि (Papamochani Ekadashi pujan vidhi)

अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।

कुछ भक्त केवल अनाज और चावल से बने भोजन से परहेज करके आंशिक उपवास भी रखते हैं। इस व्रत के पालनकर्ता को पूजा अनुष्ठान समाप्त करने के बाद पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा भी सुननी चाहिए।

पापमोचिनी एकादशी के दिन भक्त पूरी रात जागते हैं और भगवान विष्णु के नाम पर भजन और कीर्तन करते हैं।

पापमोचिनी एकादशी व्रत क्यों करते हैं? पापमोचिनी एकादशी व्रत से लाभ -

पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को अनंत धन और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र से मुक्ति मिलेगी। भक्तों को उनके वर्तमान या पिछले जीवन में जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी।

पापमोचिनी एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? पापमोचिनी एकादशी को खाने के पदार्थ :-

1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।

2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।

पापमोचिनी एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?

एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -

1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,

2. हरी सब्जियाँ,

3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,

4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,

5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,

6. शहद पूरी तरह से वर्जित

पापमोचिनी एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?

पापमोचिनी एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।

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