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परिवर्तिनी (पद्मा ) एकादशी - कर्मा एकादशी भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष - Parivartini (Padma) Ekadashi – Karma Ekadashi

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परिवर्तिनी एकादशी  वामन अथवा पार्श्व एकादशी जयन्ती एकादशी भाद्रपद

परिवर्तिनी एकादशी वामन अथवा पार्श्व एकादशी जयन्ती एकादशी भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष - Parivartini Ekadashi

14 सितम्बर, 2024, शनिवार को भाद्रपद परिवर्तिनी (पद्मा ) एकादशी - कर्मा एकादशी अथवा वामन अथवा पार्श्व एकादशी है।


आलेख - साधक प्रभात (Sadhak Prabhat)

परिवर्तिनी एकादशी (पद्मा ) वामन अथवा पार्श्व एकादशी- कर्मा एकादशी व्रत की शुरुआत

14 सितम्बर, 2024, शनिवार को भाद्रपद परिवर्तिनी एकादशी है। एकादशी 13 सितम्बर, 2024 को रात्रि 10 बजकर 30 मिनट पर प्रारंभ होगा और अगले दिन 14 सितम्बर को रात्रि 8 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा। उदया तिथि से 14 सितम्बर, 2024, शनिवार को भाद्रपद परिवर्तिनी एकादशी है।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत पार्श्व एकादशी का पारण

परिवर्तिनी एकादशी व्रत (स्मार्त ) का पारण अगले दिन 15 सितम्बर , 2024 को सुबह 6 बजकर 6 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 34 मिनट के बीच होगा।

परिवर्तिनी एकादशी ( पार्श्व एकादशी) किसे कहते हैं ? परिवर्तिनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?

पार्श्व एकादशी को वामन अथवा परिवर्तिनी एकादशी भी कहते है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली परिवर्तिनी एकादशी का महात्म्य ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान् श्रीशुक्ल और युधिष्ठिर महाराज के संवाद में वर्णित है। इस एकादशी को जयन्ती एकादशी भी कहते है। इस दिन भगवान वामनदेव की उपासना करनी चाहिए। जिससे व्यक्ति को आध्यात्मिक जगत की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के दिन भगवान मधुसूदन अपने बाएँ से दाएँ करवट लेते है। इसीलिए इस एकादशी को पार्श्व परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है।

युधिष्ठिर महाराज ने भगवान् श्रीकृष्ण को पूछा, "हे जनार्दन ! भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम क्या है ? इस व्रत करने की विधि और करने से प्राप्त होनेवाला फल इस बारें में कृपया विस्तार से वर्णन करे।"

परिवर्तिनी एकादशी जयन्ती एकादशी कथा

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "हे राजन् ! इस एकादशी को पार्श्व कहते है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर मुक्ति प्राप्त करता है। इस एकादशी के केवल महात्म्य श्रवण करने से ही व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है। वाजपेय यज्ञ करने से भी अधिक फल इस व्रत के पालन से प्राप्त होता है। इस एकादशी को जयन्ती एकादशी भी कहते है। इस दिन भगवान वामनदेव की उपासना करनी चाहिए। जिससे व्यक्ति को आध्यात्मिक जगत की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के दिन भगवान मधुसूदन अपने बाएँ से दाएँ करवट लेते है। इसीलिए इस एकादशी को पार्श्व परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है।"

युधिष्ठिर महाराजने पूछा, "हे जनार्दन ! मेरे कुछ प्रश्नों का समाधान करे। हे
देवदेवेश्वर! आप कैसे सोते है ? किस प्रकार से करवट बदलते है? चातुर्मास्य का पालन किस प्रकार से करना चाहिए ? आप की निद्रा के समय दूसरे लोग क्या करते है ? आप बलि महाराज को बंधन में क्यों रखते है ? हे स्वामी ! मेरी ये सारी शंकाए आप कृपया दूर किजिए।"

भगवान् श्रीकृष्णने कहा, "त्रेतायुग में दैत्य कुलमें जन्मा बलि नामक मेरा एक भक्त था। अपने परिवार के साथ वो मेरी पूजा-अर्चना करता था। उसने ब्राह्मणों की पूजा और अनेक यज्ञ भी किए थे। जिससे वो इतना शक्तिशाली बन गया कि उसने इंद्र को पराजित किया और स्वर्ग का राजा बन गया। सभी देवदेवता, ऋषि मेरे पास आए। उनके कल्याण के लिए मैने वामनावतार लिया और राजा बलि जहाँ पर यज्ञ कर रहा था वहाँ पहुँचा।"

बलिराजा के पास मैंने तीन पग भूमि माँगी। इससे भी अधिक माँगने की बिनती बलिराजा ने मुझसे की। परंतु मैंने दृढ निश्चय से केवल तीन मग भूमि ही माँगी। दूसरा कौनसा भी विचार न करके उसने दान में 3 पग भूमि दे दी। तत्काल मैंने महाकाय रूप धारण किया जिसके एक पग में सप्तपाताल, दूसरे पग में आकाश के साथ सातों लोक को लिया और तीसरा पग रखने के लिए जगह मांगी। तीसरे पग के रुप में नम्रतापूर्वक बलि ने अपना मस्तक आगे किया। उसके नम्रता से प्रसन्न होकर नित्य उसके साथ रहने का मैने आशिर्वाद दिया।

उसी एकादशी के दिन वामनदेव के विग्रह की स्थापना महाराज बलि के निवास पर हुई। मेरा दूसरा विग्रह क्षीरसागर में अनंत शेषपर स्थापन करते है। शयन एकादशी से उत्थान एकादशी तक मै निद्रावस्था में रहता हूँ। इन चार महीनों में हर एक को मेरी विशेष पूजा करनी चाहिए। चातुर्मास में आनेवाली सभी एकादशी का हर एक को दृढतापूर्वक पालन करना चाहिए ।

इस एकादशी के व्रत पालन से सहस्त्र अश्वमेध यज्ञ करने का फल मिलता है ।

परिवर्तिनी एकादशी पूजन विधि (Parivartini Ekadashi pujan vidhi)

अन्य एकादशी की तरह इस व्रत का धार्मिक कर्म भी दशमी से शुरू हो जाता हैं। दशमी के दिन घर में पूजा-पाठ करें और दोपहर में नदी में तर्पण की विधि करें। ब्राह्मण भोज कराएं और उसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण करें। याद रखें दशमी पर सूर्यास्त के बाद भोजन न करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर व्रत का संकल्प लें और स्नान करें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी को पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद परिवार के साथ मिलकर भोजन करें।

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें।
इसके बाद साफ-सुथरे वक्त धारण करके व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु की पूजा आरंभ करें सबसे पहले उन्हें पुस्तक के माध्यम से जल अर्पित करें।
आप भगवान विष्णु को पीला रंग का चंदन कोमा अक्षत लगाए।
भगवान विष्णु को फूल, माला, तुलसी दल आदि चढ़ाएं।
भगवान विष्णु को भोग लगाएं।
घी का दीपक और धूप जलाकर भगवान विष्णु की एकादशी व्रत का पाठ करें।
पाठ करने के बाद भगवान विष्णु की चालीसा मंत्र का जाप करने के बाद विधिवत तरीके से आरती करें।
अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत क्यों करते हैं? परिवर्तिनी एकादशी व्रत से लाभ -

परिवर्तिनी एकादशी व्रत के प्रभवा से जातक के कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं और अंत में उसे बैकुंठ लोक में स्थान प्राप्त होता है। इस दिन एकादशी की व्रत कथा सुनने मात्र से व्यक्ति का जीवन भी दुख से सुखी जिंदगी की ओर करवट लेता है।

परिवर्तिनी एकादशी को क्या क्या खाना चाहिए ? परिवर्तिनी एकादशी को खाने के पदार्थ :-

1. सभी प्रकारके फल, मूंगफली, मूंगफली का तेल।

2. आलू, नारियल, शक्कर, गुड, दूधसे बनाई वस्तुएँ ।

परिवर्तिनी एकादशी को क्या क्या नहीं खाना चाहिए ?

एकादशी को इस पदार्थों का खाना वर्जित है -

1. टमाटर, बैंगन, फूलगोभी,

2. हरी सब्जियाँ,

3. चावल, गेहूँ, ज्वार, दाल, मक्का इत्यादि,

4. बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड,

5. दुकान के आलू वेफर्स, तली हुई मुँगफली इत्यादि,

6. शहद पूरी तरह से वर्जित

परिवर्तिनी एकादशी को क्या क्या मसाले उपयोग में लाए जा सकते हैं ?

परिवर्तिनी एकादशी को मसाले में अदरक, सैंधा नमक, काली मिर्च इत्यादि उपयोग में लाए जा सकते हैं।

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