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मंत्र पुष्पांजलि

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मंत्र पुष्पांजलि

मंत्र पुष्पांजलि विशिष्ट देवताओं को समर्पित हिन्दू प्रार्थना अनुष्ठान के वो मंत्र हैं जिनका उच्चारण करते हुए देवताओं को पुष्प अर्पणा की जाती है। वेद शास्त्रों में देवताओं के आवाहन से पूर्व एवं पूजा या प्रार्थना समाप्त होने पर इन मंत्रों का पाठ किया जाता है। जैसे जब कपूर से भगवान की पूजा की जाती है, तो पुष्पांजलि मंत्र कर्पूरगौरं करुणावतारं का उच्चारण किया जाता है, और पूजा की शेष सभी प्रक्रियाएं समाप्त हो जाती हैं।

कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि ।।

इसका अर्थ है कि कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले, करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं, जो समस्त सृष्टि के जो सार हैं , जो गले में भुजगेंद्र अर्थात् सर्पों की माला धारण करते हैं उन शिव भगवान् को जो माता पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

विवाह समारोह, गृह प्रवेश, आरती, पूजा, हवन, आदि जैसे धार्मिक अनुष्ठानों को करते समय मंत्र पुष्पांजलि काम में आते हैं। यह मंत्र पुष्पांजलि के बाद ही भगवान को अर्पित किया जाता है और धार्मिक कार्यों को पूर्ण माना जाता है।

मंत्र पुष्पांजलि का अर्थ -

मंत्र पुष्पांजलि तीन विशिष्ट शब्दों से मिलकर बना है- मंत्र व पुष्प का अर्थ क्रमशः विशेष ध्वनी और पुष्प से हैं और अंजलि का अर्थ है हाथ जोड़कर वंदना मुद्रा से है। यह मंत्र पुष्पांजलि एक प्रकार का महान संकल्प जो फूलों को हाथ में लेकर किया जाता है। मंत्र समाप्त होने के बाद फूल को भगवान या देवता को अर्पित करना होता है।

देवी-देवताओं को मंत्र पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए अनेक मंत्र दिए गए हैं, लेकिन प्रचलन में कुल चार ही प्रमुख मंत्र है। मंत्र पुष्पांजलि में राष्ट्रीय एकात्म जीवन की आकांक्षा छिपी होने के कारण इसे एक राष्ट्रगीत और विश्वप्रार्थना के रूप में जाना जाता है। संपूर्ण विश्व के कल्याण की, आकांक्षा और सामर्थ्य की सबको पहचान करवाने वाली यह विश्व प्रार्थना है।

मंत्र पुष्पांजलि के चार प्रमुख मंत्र -

मंत्र पुष्पांजलि पहला मंत्र -

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:।।

अर्थ – देवों ने यज्ञ के द्वारा यज्ञरूप प्रजापति का पूजन किया। यज्ञ और तत्सम उपासना के वे प्रारंभिक धर्मविधि थे ( पूजा के लिए, यह यज्ञ प्रजापति के प्रति सम्मान दिखाने के शुरुआती रूपों में से एक है)। जहां पहले देवता निवास करते थे (स्वर्गलोक में) वह स्थान यज्ञाचरण द्वारा प्राप्त करके साधक महानता (गौरव) प्राप्त करते हैं।

मंत्र पुष्पांजलि दूसरा मंत्र-

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने। नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मस कामान् काम कामाय मह्यं। कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय। महाराजाय नम:।

अर्थ – हमारे लिए सब कुछ अनुकूल करने वाले राजाधिराज वैश्रवण कुबेर को हम वंदन करते हैं। वो कामनेश्वर कुबेर मुझ कामनार्थी की सारी कामनाओं को पूरा करें।

मंत्र पुष्पांजलि तीसरा मंत्र-

ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं।
समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात्। पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकरा‌ळ इति।।

अर्थ – हमारा राज्य सर्व कल्याणकारी राज्य हो। हमारा राज्य सर्व उपभोग्य वस्तुओं से परिपूर्ण हो। यहां लोकराज्य हो। हमारा राज्य आसक्तिरहित, लोभरहित हो। ऐसे परमश्रेष्ठ महाराज्य पर हमारी अधिसत्ता हो। हमारा राज्य क्षितिज की सीमा तक सुरक्षित रहें। समुद्र तक फैली पृथ्वी पर हमारा दीर्घायु अखंड राज्य हो। हमारा राज्य सृष्टि के अंत तक सुरक्षित रहें।

मंत्र पुष्पांजलि चौथा मंत्र-

ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो। मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति।।

अर्थ – मैं ऐसे देश में रहने की इच्छा रखता हूं अविक्षित के पुत्र मरुती, जो राज्यसभा के सर्व सभासद है ऐसे मरुतगणों द्वारा परिवेष्टित किया गया यह राज्य हमें प्राप्त हो यहीं कामना।

यह मेरी सार्वभौमिक प्रार्थना है जो सभी को शक्ति, अभीप्सा और विश्व कल्याण की प्रमुखता का एहसास कराती है। परम सत्य को समझने के लिए अनेक मार्ग अपनाए जा सकते हैं। हालांकि, इन सभी रास्तों का मतलब एक ही है। एकता, सद्भाव और सहिष्णुता की भावना होने पर ही कोई देश संप्रभु और सर्वशक्तिमान हो सकता है।

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